SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [] प्रर्य-गाथापति की पन्नी रेवती ने वहां मेरे निमित्त दो कुष्माडपाक बना कर रखे है । वह काम के नहीं है । किन्तु उसके वहां दूसरा विशेष पुराना और विराली वनस्पति की भावना बाला बिजीरे का पाक है। उसे ले भाभो वह काम का है । ऊपर के पाठ में प्राणीवाचक प्रौपषि के स्वरूप की व्याख्या की गई है। एक पाठ विशेष पर ही वह निर्धारित बिचारबिन्दु लागू होते हो, ऐसी बात नहीं है। ऐसे कई उद्धरण उशहणावं प्रस्तुत किये जा सकते है कि जहां प्राणीवाचक शब्द प्रविधि स्वरूप प्रयुक्त हुए है भौर यदि उनका प्रथं उपरो तौर (Face Value) पर किया जाय तो हास्यास्पद तथा भ्रमात्मक (Mis Irading ) हो जायगा । यथा ब्रह्माणं चक्रपाणिं कुसुमशररिपु ं वैष्णवं पेशयित्वा क्षीरेणाज्येन सम्यक् समघृतमधुना लेपयेत् तां शिलां च लिप्ता क्लिया समस्ताद् भवति यदि शिला प्रापिता चेकरा जानिया तत्र गर्ने फणिपतिरथवा वृश्चिको वाथ गांधा । ३२ । अनन्तशवनम् संस्कृत ग्रन्थावली का ग्रंथांक ७५ त्रिवेन्द्रम् का कुमार मुनि कृत शिल्परत्न भा० १ ० १४ श्लो० ३२ । Apply to the Agent for the sale of Government Sanskrit Publication Triveudrum. उक्त श्लोक कुमार मुनि के शिल्परत्नग्रंथ में प्राया है भीर इसमें उन्होंने विचित्र शब्दों से जीव-विज्ञान बताया है। इस श्लोक का अर्थ करते समय बड़े से बड़ा शास्त्रपारंगत भी विचार
SR No.010163
Book TitleBhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherBhikhabhai Kothari
Publication Year1957
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy