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________________ [२३] श्राविका के पास जो 'दुवे कवोय सरीरा' थे वह कोई पक्षी नहीं वरन कोला ही थे । भगवती सूत्र के प्राचीन चूर्णीकार तथा टीकाकारों ने भी उक्त पाठ का अर्थ 'कुष्माण्ड' फल ही लगाया है । यथा कपोतक: पक्षी विशेष: तह पे फले वर्णसाधम्र्म्यात् ते कपोतेपांडे हस् कपोते कपोतके ते च ते शरीरे बनस्पति जीव देहत्वात् कपोत शरीरे । प्रववा कपोतक शरीरे इव धूसरवर्ण साधम्यदेिव कपोतक शरीरे -- कुडमाण्ड फले एव । ते उपस्कृते संस्कृते । तेहिनो अट्ठोति बहुपायत्वात् । [ रंग की समता के कारण कुष्मांड फल को ही कपोत नाम से पुकारा जाता है । रेवती श्राविका ने उनको संस्कार देकर रख छोड़े थे । ) ( प्रा० प्रभयदेव सूरि कृत भगवतीसूत्र टोका पू० ६६१ ) ( प्रा० श्री दान शेखर सूरि कृत भ० टीका पू० ) कुष्माण्ड फल का मुरब्बा दाह प्रादि रोगों को शांत करता है, प्राज भी यह बान ज्यों की त्यों खरी उतरती है । प्राज भी प्रागरा प्रादि स्थानों पर कुष्माण्ड का मुरब्बा, पेठा इत्यादि ग्रीष्म ऋतु में अधिक प्रयोग किया जाता है । मेरठ जिले में भी सफेद कुम्हड़ा जिसका दूसरा नाम कवेलापेठा इत्यादि है, उन्हें तैयार करने में बहुत प्रयोग किया जाता है । सारांश यह है कि कुष्मांड का मुरब्बा, पेठा, पाक प्रादि गर्मी को शांत करने वाले हैं। और रेवती श्राविका ने भी भगवान महावीर के दाह रोग की शांति के लिये 'दुवे कवोय सरीरा' प्रर्थात् कुष्माण्ड फल का मुरब्बा बना कर रखा था। यहाँ 'कवोय' शब्द कुष्मांड फल का ही द्योतक है ।
SR No.010163
Book TitleBhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherBhikhabhai Kothari
Publication Year1957
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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