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________________ [२०] कपोतक-सासार (जै० सं० ४३ ) । कपोत वेगा:बाह्मी कपोत परणा = नालुका कपोत पुट = पाठ कपोत बंका - ब्रह्मा, सूर्यफुल्ली कपोत वर्णा = लायची, नालुका कपोत सार - सुर्ख सुरमा कपोतांघी - नलिका कपोतांजन = हरा सुरमा कपोतांडोपम फल = निंबु भेद कपोतिका - सफेद कोला (निघण्टुरत्नाकर जै० मा० प्र० ० ४३ ) पारावते तु साराम्लो, रक्तमालः परावतः । मा खेतः सार फलो, महापरावतो महान् ।।१३६॥ कपोताण्ड तुल्य फलो ॥१४०।। मभिधान संग्रह निषष्ट्] कापोत = सज्जी खार [भाव० प्र० निषष्ट] पारापतपदी = माल कांगनी कपोत परणा= नलिका पारापत पदी = काकपा भा० प्र० निघंटु] उपरोक्त शब्दों के पर्व से 'कपोत' शब्द की 'बनस्पति में पापकता पूर्णतः सष्ट हो जाती है।
SR No.010163
Book TitleBhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherBhikhabhai Kothari
Publication Year1957
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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