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________________ [१] "तएणं तीए रेवतीए गाहावइनीए तेनं दब सुढे जाव दाणेणं सीहे मणगारे सिभिल समाणे देवाउए णिबदे, जहा विजयस्स, जाव जम्म जीविय फले रेवती गाहावाणीए" -श्री भगवती सूत्र श० १५) सिंह मुनि मृत्योपरांत नरक में जाने वाली राजगृही ग्राम की रेवती के घर से मोषध नहीं लाये थे। वह तो मेंटिक ग्राम वाली रेवती से उक्त प्रोषध लाये थे। दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वान् भी रेवती ( मेंटिक ग्राम वाली) के इस प्रोषपदान की प्रशंसा करते हैं और तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन करने का कारण यही था, इसको स्पष्ट स्वीकार करते हैं । यथा "रेवती श्राविकया श्री वीरस्य पोषपदानं दत्तम् । तेनौषधिदानफलेन तीर्थंकर नाम कर्मोपाजितमत एव पोषषि दानमपि दातव्यम् । (हिन्दी जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई की बन चरित माला नं. ६ (सम्यकत्व कोमुवी पृ० ५७ ) जो श्रेष्ठ श्राविका है, द्वादश व्रत पारिणी है. मृत्यु उपरान्त देव लोक को जाती है तथा दान से तीर नाम कर्म का उपार्जन करती है, वह रेवती मांसाहार करे या उस तीर्थपुर नाम कर्म के कारण स्वरूप मांस का दान करे, ऐसी कल्पना करना निपट मूखता है।
SR No.010163
Book TitleBhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherBhikhabhai Kothari
Publication Year1957
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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