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________________ १३ नैतिकता के निवारण में महावीर वाणी की भूमिका • डॉ० कुन्दनलाल जैन शस्य श्यामला भारत-भूमि : कहा जाता है कि भारत 'सोने की चिड़िया' के रूप में प्रसिद्ध था। यहां दूध-दही की नदियां बहती थीं । इन जनश्रुतियों का तात्पर्य यही जान पड़ता है कि प्राचीन काल में हमारा देश भारत धन-धान्य से पूर्ण एवं समृद्ध था । भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध के समय में, जब कि यहां गणतंत्र राज्य की शासन प्रणाली प्रचलित थी, भारत व्यापार की दृष्टि से अत्यधिक उन्नत रहा है। विदेशों से व्यापार करने की प्रथा यहां प्रचलित रही थी । बड़े-बड़े सार्थवाह एक देश से दूसरे देशों में जाकर व्यापार करते थे जिससे यहां नित्य प्रति घन की वर्षा सी होती रहती थी । धान्य को तो इतनी प्रचुरता थी कि शस्य- श्यामला के रूप में आज भी भारत भूमि का गुणगान किया जाता है । हीरे, मणि, माणिक्य, रत्न एवं जवाहरात आदि भी जितने अधिक यहां रहे उतने शायद ही किसी देश में रहे हों । तभी तो मोतियों आदि की झालरें, बन्दनवारें गृहद्वारों और राजमहलों की शोभा बढ़ाती थी । काष्ठकला और हर्म्य यादि में भी शोभा वृद्धि के लिये इन अमूल्य रत्नों का प्रयोग किया जाता था । धन-लिप्सा और श्राक्रनरण : गुप्तकाल में भारत की भौतिक सम्पदा इतिहास प्रसिद्ध रही है । अनेक विदेशी यात्रियों ने यहां की धन-सम्पदा को अतिशयता का विस्तृत वर्णन किया है । किन्तु यागे चलकर धन-धान्य की इस विपुलता ने विदेशी लुटेरों शासकों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया । इतिहास साक्षी है कि महमूद गजनवी और गौरी के श्राक्रमरण इसी धन लिप्सा के परिणाम थे । ये लुटेरे वादशाह अपने साथ करोड़ों की सम्पत्ति लूट कर ले गये थे । तैमूरलंग की कथा भी कुछ ऐसी ही है । जिस तख्तताउस ( मयूरासन ) को वह अपने साथ ले गया था उसमें जड़े हुए जवाहरातों का मूल्य ही अकेला करोड़ों में ग्रांका जाता है । भौतिकता साध्य नहीं साधन : उपर्युक्त वातों से स्पष्ट है कि पहले भारत भौतिक दृष्टि से अधिक सम्पन्न रहा है, जिसका अर्थ है कि हमारे यहां भौतिकता की उपेक्षा नहीं को जाती थी । पर यह
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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