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________________ प्रादर्श परिवार की संकल्पना और महावीर yaNPCAR१६५ आदर्श चरित्र ही प्रादर्श परिवार : - युगसन्त मुनि श्री विद्यानन्द जी ने 'इन्सान और घराना' शीर्षक लेख में आदर्श. चरित्र को ही आदर्श परिवार का लक्षण बताते हुए लिखा है-'घराना कोई ऊंचे महलों से नहीं वनता । यदि किसी झोपड़ी में रहने वाले व्यक्ति का भी रहन-सहन, आचार अच्छा है, और सत्यनिष्ठ है, तो उसका घराना अच्छा घराना कहलायेगा । यदि कोई ऊंचे महलों में रहने वाला व्यक्ति भ्रष्ट है, उसका रहन-सहन ठीक नहीं है, तो वह घराना, वह कुल कभी उत्तम नहीं हो सकता । एक उत्तम घराने को बनाने में सात पीढ़ियां लग जाती हैं । उत्तम कुल बनाने के लिये पुरुपों से अधिक भार नारियों पर है । जव पुरुप चरित्र से गिरता है, तो अपने ही कुल को धव्या लगता है, पर जब एक नारी अपने शील से गिरती है तो दो घरों को नष्ट कर देती है । जीव का चरित्र ही संसार है, धर्म है। चरित्र ही मन्दिर है। चरित्र ही ईश्वरत्व की प्राप्ति कराता है।' गृहस्थ की प्राचार संहिता : . भगवान् वर्द्धमान महावीर ने गृहस्थ और मुनि दोनों के लिये पृथक् आचार-संहिता निर्धारित की । गृहस्थ की प्राचार-संहिता का पालन करने वाला व्यक्ति आदर्श गृहस्थ है। आदर्श-परिवार का प्रमुख गुण चरित्र है । वस्तुतः समस्त सम्पन्नता से युक्त किन्तु चरित्रहीन परिवार को आदर्श परिवार की संज्ञा से विभूपित नहीं किया जा सकता। परिवार की सम्पन्नता, भौतिक उपलब्धियां मात्र वृक्ष है और उसकी प्रतिष्ठा चरित्ररूपी पुष्पों से उड़ने वाली पावन गंध पर आधारित है। चरित्र, धर्म की श्रेष्ठ और सुवासित उपलब्धि है.। भगवान महावीर ने सर्वाधिक महत्व चरित्र पर दिया । मन, वचन,..काय से, चरित्र को संवारने को योग एवं तप कहा । विषय-वासना से सदैव विरत रहने का सन्देश दिया । सत्य, .. अहिंसा, अचौर्य, परिग्रह, परिमाण तथा ब्रह्मचर्य इन पांच अणुव्रतों के पालन का निर्देश किया । व्रत का अर्थ : संकल्प शक्ति का विकास :, व्रत का अर्थ है संकल्प शक्ति का विकास । संकल्प शक्ति जिस व्यक्ति में जितनी तीव्र होगी, वह अपने जीवन में उतना ही सफल होगा। यह शक्ति अभ्यास से संवद्धित होती है, स्थिरता प्राप्त करती है । अणुव्रत इसी अभ्यासक्रम को विकसित करने का मार्ग है। व्रत का प्रारम्भ अणु से होता है । अणुव्रत व्यक्ति-व्यक्ति के जीवन की सीमारेखा है। यह आत्मानुशासन है, स्वीकृत नियन्त्रण है, आरोपित नहीं । यह मानवीय धरातल की न्यूनतम मर्यादा है । यह प्रेम, मैत्री और संयम से अपने आपको पाने का मार्ग है । अणुव्रत का सार है-संयम जीवन है, असंयम मृत्यु । अहिंसा-व्रत नींव का प्रमुख पापाण है, जिस पर अवशिष्ट व्रतरूपी आचार-संहिता का भव्य प्रासाद निर्मित हुआ है । अहिंसा वीतराग प्रेम की जननी है। अहिंसाणुव्रती सदस्यों के परिवार में क्रोध और घृणा जैसी विकृतियों को स्थान नहीं, वहां क्षमा का ही साम्राज्य रहता है । सत्याणुव्रत निष्कपट व्यवहार द्वारा पारिवारिक सदस्यों के संबंधों को सरल बनाता है । उदरपूर्ति के लिये गृहस्थ जिस आजीविका या व्यवसाय को अपनाये उसमें 2AVAN
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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