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________________ महावीर : बापू के मूल प्रेरणा-स्रोत ५६ लिए निरन्तर अहिंसात्मक असहयोग उसकी मूल भावना थी । सत्याग्रही होने के लिए आत्मशुद्धि, मन-वचन तथा कर्म शुद्धि व सत्यनिष्ठ निष्पक्ष भावना अपेक्षित है। आत्म नियंत्रण अहिंसा, दृढनिश्चय व अपरिग्रह ये चार सत्याग्रह के सूत्र हैं। सत्याग्रह के साथ लोकसंग्रह की भावना निहित है । स्याद्वाद और अनेकान्तवाद : वस्तु तत्व को समझने और विभिन्न मतों में आदरपूर्वक समन्वय स्थापित करने की दृष्टि से बापू ने जैनधर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत स्याद्वाद अथवा अनेकान्तवाद को आत्मकथा में समझाने का प्रयत्न किया है । ये दोनों सिद्धांत अहिंसा भावना पर अवलम्बित हैं।' बापू ने कहा है-"जब कभी अहिंसा की प्रतिष्ठा होगी तो अवश्य अहिंसा के महान् प्रवर्तक भगवान महावीर की याद सबसे अधिक होगी और उनकी बतायी अहिंसा का सबसे अधिक प्रादर होगा। जैन धर्म किसी व्यक्ति विशेप का धर्म नहीं, यह तो प्राणिमात्र का धर्म है। उस पर किसी जाति वर्ग अथवा देश का अधिकार नहीं । उसमें तो सभी एकान्तिक मतों को अनेकान्त के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। गांधीवाद भी किसी फिरका, पन्थ अथवा सम्प्रदाय विशेप को लिए हए नहीं है । उसमें विभिन्न धर्मो से उत्तम प्रकार की शिक्षाओं को एकत्रित किया गया है। अतः समूचे रूप में वह जैन धर्म के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखाई देता । इसलिए उन्होंने अपने हिन्दू धर्म को आत्मोन्नति में कहीं बाधक भी नहीं माना । धर्मान्तरण करने की भी आवश्यकता बापू ने नहीं समझी । गांधीजी ने यद्यपि अपने पीछे कोई पन्थ नहीं छोड़ा, फिर भी आज उनके विचारों और उपदेशों को 'गांधीवाद' कहा जाने लगा है। उसमें सत्य और अहिंसा की रक्षा को बहुत अधिक महत्व दिया गया है और इस उद्देश्य की पूर्ति का मार्ग जीवन की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के संघर्ष में न वढ़कर वल्कि अपनी आवश्यकताओं को घटा कर आध्यात्मिक सन्तोप पाने का प्रयत्न वताया गया है । व्यक्ति और समाज के प्रयत्नों का लक्ष्य भौतिक समृद्धि समझना गांधीवाद के अनुसार चण्डाल सभ्यता है । इस सभ्यता से मनुष्य धर्म और ईश्वर को भूल जाता है । इस प्रकार राष्ट्रपिता महात्मा वापू महामानव महावीर द्वारा प्रचारित जैन सिद्धान्तों से प्रेरित थे । यह रायचन्द भाई के ही सम्पर्क का परिणाम था। वैष्णवं होते हुए भी उनका समूचा जीवन आत्ममूलक जैन आदर्श का जीवन था। महावीर की लोक संग्रही भावना ने वापू के साधनाशील जीवन को पालोकित किया। इसी भावना से उन्होंने आत्मकल्याण करते हुए भारत में स्वतंत्रता का पुनीत दीपक जलाया और मातृभूमि की परतंत्रता की कठोर शृङ्खलायें छिन्न-भिन्न कर सारे विश्व में अहिंसा की शक्ति को प्रतिष्ठित किया। 1-भारतीय संस्कृति : एक समाजशास्त्रीय समीक्षा। 2-गांधी : व्यक्तित्व, विचार और प्रभाव : काका कालेलकर, पृ० ४६६ । 3-गांधीवाद की शव परीक्षा : यशपाल । 4-हिन्दू स्वराज्य, पृ० ५०-५१ ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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