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________________ भगवान महावीर के शाश्वत संदेश ३५ कर्ता है-स्वयं ही भोक्ता है और उन कर्मों से मुक्त होने वाला भी स्वयं ही है। अर्थात् भगवान महावीर ने प्रत्येक व्यक्ति को अपने विकास का उत्तरदायी बतलाते हुए पुरुषार्थ करके स्वतंत्र बनने का संदेश दिया । व्यक्ति पराधीन अपनी ही गलतियों के कारण बनता है, और उन अवगुणों से दूर हट जाना उसके अपने वश की ही बात है। परमुखापेक्षिता और दीनता की आवश्यकता नहीं । प्रत्येक प्रात्मा में परमात्मा बनने की शक्ति एवं योग्यता है । यह संदेश वहुत ही उद्घोषक है, प्रेरणादायक है। मनुष्य की सोई हुई अविकसित शक्तियों को जागृत और विकसित करने का काम प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं करना है। दूसरा उसमें निमित्त कारण बन सकता है। पर उपादान तो प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा स्वयं ही है । कर्मों का बंध आत्मा ही करती है । और पुस्पार्थ और प्रयत्न द्वारा कर्मों से मुक्त भी हुआ जा सकता है । यह बहुत बड़ी वात है जो मानव समाज सामने भगवान् महावीर ने रखी। उन्होंने हृदय-परिवर्तन को प्रधानता दी, सुप्त और गुप्त शक्तियों को जागृत करने की प्रेरणा दी। कषाय-विजय ही सच्ची विजय : ___ कर्मों के बन्ध और उनसे मुक्त होने के कारणों पर भगवान महावीर ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला है । इससे मनुष्य अपनी शक्तियों और गुणों का परिपूर्ण विकास करके कैसे परमानन्द प्राप्त कर सकता है यह बहुत ही स्पष्ट हो जाता है। राग और द्वेष के २-२ भेद हैं । कोष, मान, माया और लोभ । भगवान् महावीर ने कहा है कि क्रोध से प्रीति का, मान से विनय का, माया से मित्रता का और लोभ से समस्त गुणों का नाश होता है । अतः शांति से क्रोध को, नम्रता से अभिमान को, सरलता से माया को, और संतोप से लोभ को जीतो। प्रत्येक व्यक्ति और समाज तथा विश्व में अशांति इन क्रोध, मान माया और लोभ के कारण ही होती है । इसलिये इनसे बचने और क्षमा, मृदुता, सरलता और संतोप को अपनाने का परम कल्याणकारी संदेश दिया गया है। क्रोध आदि के दुप्परिणामों से कितना दुःख उठाना पड़ता है, कितनी अशांति भोग करनी पड़ती है यह सभी अनुभव करते हैं। अनादिकाल के संस्कार वश अपने मन के अनुकूल कोई काम नहीं होने या करने पर क्रोध की ज्वाला भभक उठती है। उस समय मनुष्य कर्तव्य और अकर्तव्य को भूल जाता है, नहीं कहने की बात कह देता है। हिंसा आदि नहीं करने के काम कर बैठता है । इमसे स्वयं को नुकसान होता है और दूसरों को भी । स्वास्थ्य की दृष्टि से भी क्रोध का बहुत बुरा असर पड़ता है। अधिकांश व्यक्ति अभिमान वश दूसरों को तुच्छ वचन कहते हैं नीच समझते हैं। अपने अभिमान पर चोट पहुंचने से आपा खो बैठते हैं। आज मायाचार दिखाकर कपट बहुत बढ़ गया है पर दूसरों को ठगने का प्रयत्न करता हुआ वास्तव में मनुष्य स्वयं ठगा जाता है। दगा किसी का सगा नहीं। लोभ का दुप्परिणाम तो सबसे भयंकर है । प्रायः सभी पाप लोभ के कारण ही हा करते हैं। इसलिये इन चार कपायों को बहुत प्रधानता देकर भगवान् महावीर द्वारा उन पर विजय प्राप्त करने का उपदेश दिया गया है।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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