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________________ Kasai भगवान् महावीर के शाश्वत संदेश ... • श्री अगरचन्द नाहटा Athawalaked UUUUUUU nnnnnn मानव अन्य प्राणियों से विशिष्ट : _मानव अन्य प्राणियों से विशिष्ट इसीलिए माना गया है कि उसके पास मन और भाषा की जैसी महत्त्वपूर्ण शक्ति है जो दूसरों को प्राप्त नहीं है। मन के द्वारा वह मनन करता है, अच्छे-बुरे कामों का निर्धारण करता है। भाषा के द्वारा वह अपने भावों को अच्छी तरह से व्यक्त करता है, दूसरे के भावों को सुनता-समझता है। आगे चलकर जव भगवान ऋपभदेव ने मानवीय सभ्यता का विकास किया तो लिपि और अंक तथा अनेक विद्याएं और कलाएं सिखाई तो मानव की कार्य-शक्ति बहुत बढ़ गई। पारस्परिक सद्भाव एवं संगठन से समाज बना । व्यक्ति एक दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी बने। इस तरह अहिंसा और प्रेम धर्म का विकास हुया । यद्यपि परिस्थितियों आदि के कारण मानव स्वभाव में बुराइयां भी पनपी । फिर भी महापुरुषों की वाणी से मानव समाज को मार्गदर्शन मिलता रहा । इससे मनुष्य ने केवल इह-लौकिक ही नहीं, पारलौकिक परमसिद्धि मोक्ष तक प्राप्त करने का मार्ग ढूंढ निकाला । मानव में जो वहुत सी कमजोरियां हैं उनको मिटाने व हटाने के लिए ही नीति, धर्म और आध्यात्म की शिक्षा महापुरुषों ने दी। न्यूनाधिक रूप में गुणों के साथ दोष भी सदा से उभरते रहे हैं। महापुरुषों ने दोषों के निवारण और गुणों के प्रगटीकरण तथा उन्नयन का मार्ग वतला कर जन-साधारण का वड़ा उपकार किया है । उनके उपदेश किसी समय-विशेष के लिये ही उपयोगी नहीं, पर वे सदा-सर्वदा कल्याणकारी होने से शाश्वत संदेश कहे जाते हैं। भगवान् महावीर जैन-धर्म के अन्तिम तीर्थंकर, इस क्षेत्र और काल की अपेक्षा से माने जाते हैं। उन्होंने जगत् के प्राणियों को दुःखों से संतप्त देखा, और उन दुःखों के कारणों पर गम्भीर चिन्तन किया । साढ़े बारह वर्षों तक सावक जीवन में वे प्रायः मौन और ध्यानस्थ रहे । आहार-पानी की भी उन्हें चिन्ता न थी । इसलिये साढ़े वारह वर्षों में केवल ३४१ दिन ही, दिन में एक बार अाहार-पानी एक साथ में ही ग्रहण कर लिया। वाकी दिन उपवास-तप में ही विताये । लम्बी और कठिन साधना के बाद उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । वे पूर्ण वीतरागी और अह बने । प्राणीमात्र के कल्याण के लिए उन्होंने जो विधिनिषेध के रूप में ३० वर्ष तक धर्मोपदेश दिया, उससे लाखों व्यक्तियों का जीवन आदर्श और पवित्र बना । उनके दिये हुए उपदेश आज भी मानव-समाज के लिये उतने ही उपयोगी
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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