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________________ परिचर्चा हिंसा को जीवन का अंग बनाया उसीने दुःखों से मुक्ति प्राप्त करली और जिसने हिंसा को अपनाया उसने चलाकर प्रशांति को निमन्त्रण दिया । ३३० भगवान् महावीर ने अपरिग्रह एवं अनेकांत के सिद्धान्तों को भी जीवन में उतारने पर बल दिया । उन्होंने सर्वप्रथम उक्त सिद्धान्तों को पूर्णतः अपने जीवन में उतारा और जब वे अपने मिशन में शतप्रतिशत सफल रहे तव निर्भय होकर विश्व में अपना संदेश प्रसारित किया । महावीर ग्रपरिग्रह की साक्षात प्रतिमूर्ति थे । उन्होंने अनेकांत एवं स्याद्वाद की महता को भी सिद्ध किया । भगवान् बुद्ध के समकालीन होने एवं दोनों का एक ही प्रदेश में विहार होने पर भी भगवान् महावीर ने महात्मा बुद्ध के अस्तित्व को कभी नकारा नहीं । इस प्रकार उन्होंने सह अस्तित्व का सही उदाहरण प्रस्तुत किया । भगवान् महावीर ने अपना समस्त संदेश श्रद्ध मागवी भाषा में दिया जो उस समय जन भाषा ही नहीं किन्तु सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा थी । उन्होंने कहा कि जब तक हम जन भाषा में अपने विचार व्यक्त नहीं करेंगे तव तक हम अपने मिशन में सफल नहीं होंगे । महावीर ने वर्ग-भेद एव जाति-भेद की भावना का घोर सिद्धान्त को ग्रस्वीकृत किया और अपने समवशरण में सभी को धर्म श्रवण करने की अनुमति दी । इस प्रकार महावीर ने मानव उनमें भेद-भाव की भावना को जड़ से समाप्त किया । विरोध किया, ऊंच-नीच के यहां तक कि पशु-पक्षी को मात्र को गले लगाकर २. भगवान् महावीर के परिनिर्वारण को २५०० वर्ष समाप्त हो गये हैं । इस दीर्घं काल में देश ने पचासों बार उत्थान एवं पतन देखा है कभी विकास एवं समृद्धि के शिखर को स्पर्श किया है तो कभी वह गरीबी, भुखमरी एवं अंतः कलह का शिकार हुआ है । किन्तु देश में भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्यों का सदैव ही समादर हुआ है । भारत देश ने अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया और जो जीवन में जितना अधिक अहिंसक रहा उसका उतना ही अधिक समादर हुआ और उसे सबसे अधिक गया। देश में महावीर के अनुयायियों की दया को सब ने श्रेष्ठ स्वीकार किया और प्रयास किया 1 पावन एवं पूज्य माना अहिंसा को ग्रथवा जीव जीवन में उतारने का संख्या अल्प होते हुए भी जहां तक हो सका उसे गांवों में कुछ समय पहिले तक कुत्ते एवं बिल्ली के बच्चे होने पर उन्हें भोजन खिलाने की प्रथा थी तथा किसी भी पशु एवं पक्षी को अकारण दंड नहीं देने का विधान था । कबूतरों को अनाज डालना, चीलों को पकोड़े खिलाना, चींटियों को ग्राटा डालना ये सव जीव दया के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । जो भारत के अतिरिक्त कहीं नहीं मिलते हैं । अहिंसा के अतिरिक्त अनेकांत के सिद्धान्त की प्रतिष्ठा यद्यपि हम जैनेतर समाज के साथ अवश्य कर पाये और सह अस्तित्व की भावना को जीवन में उतारने में हम सफल भी हुए परन्तु महावीर के अनुयायी सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को व्यवहार में नहीं अपना सके चौर भगवान् महावीर के कुछ ही वर्षो पश्चात् जैन संघ विभिन्न सम्प्रदायों में विभाजित हो
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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