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________________ ३१२ मांस्कृतिक संदर्भ २. अर्द्ध मागधी, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती व हिन्दी तथा प्राविद भाषायी जन साहित्य को शुद्ध मूल अनुवाद सहित प्रकाशित किया जाए। ३. प्रत्येक प्राचार्य के ग्रन्थों की शब्द सूचियां अर्थ सहित तैयार की जाएं, जिससे उनके शब्दों को वर्तनी (रूप) व अर्थ मान्नूम हो सकें और शब्दों की ध्वनि व अर्थ में परिवर्तन जाना जा सके। ४. हिन्दी व दूसरी भारतीय भापायों में स्तरीय जैन को तैयार किए जाएं और उनमें __ शब्दों के सव भापायों के रूप दिए जाएं। ५. जैन साहित्य का भापा विज्ञान की दृष्टि से अध्ययन किया जाए, और जो काम हुया है, या हो, उसके प्रकाशन का पूरा प्रवन्ध होना चाहिए। ६. कुछ संस्थाएं सुधरी हुई देवनागरी लिपि में न केवल दूसरी भापानों के जैन साहित्य का प्रकाशन करें, वरन् जैनेतर साहित्य का प्रकाशन भी करें। द्राविड़ भापात्रों के लिए एक लिपि तैयार करने व उसके प्रचार-प्रसार में सहयोग दें। यह काम भविष्य मे बड़ा फल देगा। ७. साहू शांतिप्रसादजी द्वारा स्थापित भारतीय ज्ञानपीठ के समान दूसरी जैन साहित्यिक संस्थाएं व ट्रस्ट इस प्रकार के अध्ययन को सहयोग दें। उनका एक लाख रुपये का पुरस्कार साहित्य व भापा की महान् सेवा है। आज लेखक की सबसे बड़ी समस्या अपनी रचना के प्रकाशन की है। फिर भापा विनान, साहित्य कोण आदि बहुत श्रम साध्य व कम विकने वाले होते हैं। यह काम व्यापारिक दृष्टि से नहीं किया जा सकता । ट्रस्ट ही यह काम कर सकते हैं। ८. धनी व दानी अपने ट्रस्टों से इस काम में लगे विद्वानों को धन-ग्रन्य प्रादि से सहयोग दें व उनकी रचनाओं के प्रकाशन में आर्थिक सहायता दें। इस काम में साम्प्रदायिकता से ऊपर उठने की आवश्यकता है । श्रेष्ठ पुस्तकों पर बड़े-बड़े पुरस्कार दें। विद्वानों, पुस्तकालयों व विश्व विद्यालयों को ऐसा साहित्य भेंट में दिया जा सकता है । डा० रघुवीर, संस्कृतनिष्ठ हिन्दी शब्दावली निर्माण तथा रा० भा० पतंजलि निगमानंदजी भी दानियों के सहयोग से ही काम कर सके हैं। वैदिक शब्दानुक्रम कोश ग्यारह हजार पृष्ठों में है । यह भी एक ट्रस्ट की देन है। ६. पचास-सी जैन साधु इस काम में दिलचस्पी लें व भाषा सेवा या भाषा विज्ञान सम्बन्धी साहित्य रचना में प्रवृत्त हों। शब्द संग्रह, लोकोक्ति संग्रह, जनपदीय शब्दों का संग्रह कार्य, शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन, व्याकरण, जनभापा (Folk Language) अर्थ विज्ञान (सेमेन्टिक्स), शब्द व्युत्पत्तियों का संग्रह अादि करें। यह काम हमारे साधु कर सकते हैं, पहले वे इस विपय का पूरा अध्ययन करें। जो काम एक साधु कर सकता है, उतना काम पचास विद्वान् भी नहीं कर सकते । इस काम में भी जैन साधु पुराने जैन आचार्यो, कोशकारों व वैयाकरणों का अनुकरण करें। ऊपर जो काम वताए गए हैं, वे तो संकेतमात्र हैं। कल्पनाशील विद्वान् व संस्थाएं ऐसे वीसियों और काम चुन सकती व कर सकती है । इस क्षेत्र म कदम-कदम पर काम हैं।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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