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________________ ३० . .. ... . . : सांस्कृतिक संदर्भ हैं । भापाओं के पारस्परिक सम्बन्धों व राजनीतिक, व्यापारिक व सांस्कृतिक सम्बन्धों के कारण भापात्रों में विभिन्न शब्दों; संकर शब्दों या दोगले शब्द जन्म लेते रहते हैं, वनते रहते हैं, जैसे धन-दौलत, अगनवोट, टिकटघर, नीलामघर, मेजपोश आदि । प्रश्न की जटिलता: ऊपर के समस्त विवेचन से यह मालूम हो गया होगा कि भारत में भाषाओं का प्रश्न बड़ा जटिल है, पेचीदा है। उसके अनेक पहलू हैं। जहां ज्ञान विज्ञान के प्रचार, समस्त भारत के प्रशासन व भावात्मक एकता (इमोशनल इंटीग्रेशन) के लिए हिन्दी के पूर्ण विकास की आवश्यकता है, वहां प्रदेशों की भाषाओं व अल्प संख्यकों की भाषाओं के विकास व संरक्षण की आवश्यकता भी है। उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भारत के सभी नागरिकों का यह महान् कर्तव्य है कि वे अपनी भापा का सम्मान करते हुए, दूसरी भारतीय भाषाओं के प्रति भी आत्मीयता, समभाव व समादार का व्यवहार करें। भापात्रों की अनेकता में एकता देखने की उदारता व सहिष्णुता की जरूरत है । यह एक प्रकार से परम धर्म है, महान् कर्तव्य है । जैन विद्वान् इस काम में सहयोग दें। . वहत दिन हम भाषाओं के प्रश्न को उसके सही रूप में देखने में असमर्थ रहे, उसे उलझाते रहे, उसके नाम पर लड़ते-झगड़ते रहे और अपना अहित करते रहे। अपनेअपने दृष्टिकोण को ठीक मान कर ऐसे कट्टरपन्थी बने, कि देश के दूरदर्शी नेताओं की बात पर ध्यान ही नहीं दिया। निहित स्वार्थ देश के हित पर छा गया, ईस सबका परिरणाम यह हुआ कि भारत को स्वतन्त्र हुए पच्चीस वर्ष हो गए, पर भाषाओं का प्रश्न हल होने में नहीं आ रहा है । काश, भारतीय जनता इस प्रश्न के महत्व को ठीक समझ कर इसको हल करने में सहायक हो । जैन दृष्टिकोण : यहां अब इस प्रश्न के प्रति जनों के दृष्टिकोण पर विचार किया जाएगा। प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव व अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी ' का भाषाओं के प्रश्न पर क्या दृष्टिकोण और उनका भाषाओं को क्या योगदान था? जैनाचार्यो, कवियों व लेखकों ने भारतीय भाषाओं के लिए क्या काम किये ? फिर मध्यकालीन भारतीय भाषाओं व आधुनिक भारतीय भापात्रों के लिए जैन समाज क्या कर रहा है और उसे क्या करना चाहिए, इन सब बातों का उल्लेख यहां अति संक्षेप में किया जाएगा। भगवान् ऋषभदेव की, देन : जनों की मान्यता के अनुसार प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ ने भोग भूमि के अन्त मे और कर्मभूमि के प्रारम्भ में 'असि, मसि, कृपि' आदि कर्मों या बातों को जनता को सिखाया । इनमें 'मसि' से आशय लिखने पढ़ने से था । इस प्रकार वे भापा व विद्याओं के जन्मदाता हुए। उन्होंने लेख, गणित, नृत्य, सौ प्रकार की शिल्पकलाएं, वहत्तर पुरुपों की कलाएं और स्त्रियों की चौसठ कलाएं प्रचलित की। भारत की ब्राह्मी लिपि को जन्म भी उन्होंने दिया । ये सब प्रागैतिहासिक बातें हैं । उनसे विद्वानों का मतभेद हो सकता है।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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