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________________ भगवान् महावीर के पांच नाम और उनका प्रतीकार्य प्रतीकार्थ : यदि इसी बात को हम एक रूपक में रखें तो वह इस तरह होगी । एक तो हम तट पर खड़े हैं नाव में चढ़ने के लिए, दूसरे हम एक पके हुए इरादे से नाव पर चढ़ चुके हैं, तीसरे हमने दिशा तय कर ली है और नाव को हांक दिया है, चौथे नाव मझधार से आगे बढ़ने लगी है । किनारा नजदीक हुआ जाता है। पांचवे हम पार पहुँच गए हैं और अपना असली असवाव उतार रहे हैं । यह है, महावीर के पांचों नामों की स्थिति, या सम्यक्त्व के अनुसंधान की क्रमानुवर्ती कथा । वर्द्धमान, सन्मति, वीर, महावीर, प्रतिवीर । इसे यों भी कहा जा सकता है साधक के गति में आने से पूर्ण णमोक्कार मंत्र की उलटी गिनती – साधु, उपाध्याय, आचार्य, ग्रर्हन्त, सिद्ध | गमोक्कार मंत्र और महावीर विम्व - प्रतिविम्व ग्रामने- सामने खड़े हैं । 'महावीर के नाम निगेटिव्ह है' गमोक्कार मन्त्र के और रामोकार मन्त्र शिखर पर से उतरती डगर है साधक के जीवन की । पहले प्रयोग, फिर विश्लेषण, फिर पुष्टि, फिर व्यवहार और तदन्तर सिद्धि । जैन धर्म इसी भेदविज्ञान की प्रतिमूर्ति है । ११ इस तरह महावीर के पांच नाम जहां एक ओर अनुश्रुतियों में गुथे हैं, वहीं दूसरी चोर कथा की स्थूलता को चीर कर खड़ी है उन नामों के बीच सत्य और सम्यक्त्व को खोज निकालने की एक स्पष्ट खोज प्रक्रिया | 0400
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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