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________________ २६० सांस्कृतिक संदर्भ मुक्ति और परम कल्याण की बातें सोचते थे। महावीर पृथक्त्वाओं, अलगावों, मनुष्य के प्रति अनास्थाओं और फिरकेवाजी को कहीं कोई महत्त्व नहीं देते। वे अपने मूल्यों और मान्यताओं के अनुरूप जीवन जीने के लिए कष्ट उठाते हैं और इस कष्ट प्रक्रिया में ही उन्हें यह वोध होता है कि मानव संभावनाओं के चरम विकास की तलाश 'चुने हुए' मार्ग से ही हो सकती है। महावीर के ऊपर लिखे गए धार्मिक साहित्य में वे मानसिक स्थितियाँ अंकित नहीं हो सकी जिनसे गुजर कर महावीर अपनी चेतना के द्वंद्वों में संगति खोज सके थे। मुक्ति की कल्पना को उन्होंने जी कर दिखाया था। महावीर की मनोवृत्तियों की निविड़ता की खोज, या उनकी पुनर्रचना हो तो महावीर के अंतःकरण का द्वंद्वमय जगत् भी सामने आ सकता है, जिसमें आस-पास के विभिन्न जीवन-स्तर, मूल्यों की मनमानी पीर दर्पो को देख कर साधारण जीवन से वैराग्य जगा, जिसमें यह भाव पाया कि इन लोगों का अंधा जीवन में कैसे जी सकता हूँ ? उन्होंने प्रचलित जीवन पद्धति में छिपी अनीतियों को देखा और अनित्यता के दार्शनिक कण्ट के साथ, इस मानवीय कष्ट को भी सहा । वे इस घेरे को तोड़ कर, अपने स्तर से, मानवीय दुर्वलताओं और अन्यायों के विरुद्ध एक योगी के रूप में लड़े और उसका प्रभाव पड़ा, एक परम्परा बनी। इस परम्परा को उसकी रूढ़ियों से मुक्त करना होगा। महावीर की विचारधारा परम्परागत 'ब्राह्मणचिन्तन' से भिन्न है । वह आज के 'मुक्त बौद्धिक' की चित्तवृत्ति के अधिक निकट है। उनका अनेकान्तवाद सत्य के प्रति मतभिन्नता के जनतांत्रिक सिद्धांत की शक्ति देता है। अनुशासन, अराजकता के विरुद्ध लड़ने का एक अस्त्र है। अराजकता समकालीन इतिहास में वहती ही जा रही है। इसे क्रांति के समर्थन में ले आने के लिए महावीर से यह पाठ सीखा जा सकता है कि आपस में सहिष्ष्णुता अनन्त सीमा तक होनी चाहिए । वैज्ञानिक, औद्योगिक और मानवीय समाज में ही वे मूल्य और मान्यताए चरितार्थ हो सकती हैं जिनके लिए महावीर ने घर द्वार छोड़ा था। 'अनिकेत' हुए थे, अजनबी बने थे । इन मानवीय मूल्यों और मान्यताओं के लिए महावीर का जीवन और कृतित्व अनुशीलन योग्य है । लेकिन महावीर की मुख्य प्रासंगिकता, उनकी सामाजिक और मानवीय चेतना के सन्दर्भ में है। उन्होंने सवर्ण समाज की जगह 'संघ समाज' की नींव डाली, उस विचार को अनेक में रोपा। उनके 'चोले' बदल दिए और इस प्रकार हजारों लाखों का रूपान्तरण हो गया । . .. .
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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