SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८८ . सांस्कृतिक संदर्भ कर लेता है लेकिन सामाजिक अपमान वह कभी बरदाश्त नहीं करता । विवशता में वह सहता है लेकिन सहने की प्रक्रिया में घनीभूत होता हुआ असंतोष अपने चरम विन्दु पर फूटता है। यही क्रांति है। क्रांति का उद्देश्य अहिंसक नागरिकों के समाज की रचना करना है। महावीर जिन मानवीय उच्चतात्रों की बातें कहते हैं, वे यदि समाज से अोझल हो जायें तो वह एक दिन नहीं चल सकता। महावीर के समान हद चरित्र के लोग ही व्यवस्थाएं बदलते हैं, बनाते हैं । 'महावीर' ही उस चरम बिन्दु को ला सकते हैं अथवा हृदय-परिवर्तन कर सकते हैं । महावीर की अहिंसा की निरपेक्ष व्याख्या करके लोग उनकी सामाजिक चेतना की उपेक्षा करते हैं। उन्हें लगता है, महावीर दिकालातीत अनुभवों के अन्वेपक थे, मामाजिक प्रश्न उनके लिए गौरण था लेकिन महावीर की विचारधारा में भी वह सामाजिक चेतना है, जो पीड़ितों को अभय देती है और आदर्शों और मूल्यों को वस्तुओं और अहंकारों से उच्चतर स्थान पर प्रतिष्ठित करती है। महावीर का विचार और कर्म एक है । वे सत्य के सम्बन्ध में दिक्कालातीत परम सत्यों के विषय में, जिज्ञासाओं का अपने अनेकान्तवाद से उत्तर देते हैं, लेकिन विद्रोही चिंतकों का वल, सामाजिक पक्ष पर अधिक रहा है क्योंकि विद्रोही चेतना का प्रतिफलन समाज में झलकना चाहिए अन्यथा विद्रोह कल्पित यानी मूल्यहीन है । अन्तर 'प्रकार' का नहीं 'पहुंच' का : ' ___ स्वरूप दृष्टि से सभी आत्माएं समान हैं। यह एक दार्शनिक मंतव्य है किन्तु यह नैतिक या सामाजिक क्रथन भी है। यह वोध 'व्यापक' और 'सार्वजनीन' है। वह अात्मा की अनेकता, विविधता मानता है क्योंकि वह प्रत्यक्षतः देखता है कि प्रात्माएं समान होकर भी एक स्तर की नहीं है, वे विविधस्तरीय हैं । अतएव उनमें 'प्रकार का अंतर नहीं, 'पहुँच' का अंतर है। 'पहुंच' के लिए अपने प्रति कठोरता आवश्यक है, इसीलिए बुद्ध और महावीर के मत में कठोरता और कसाव अधिक है । उसके बिना 'संघ' नहीं बन सकता और 'संघ' के विना, सामाजिक चिंतकों और साधकों द्वारा शासक वर्ग पर नैतिक दवाव नहीं डाला जा सकता। यदि शासक वचन दे कि वह. अकारण या मतान्ध होकर हत्या नहीं करेगा तो उसके साथ पट सकती है । 'शांति' का अर्थ नहीं कि शांति एक निरपेक्ष प्रत्यय है या यह कि शांति 'तत्ववाद' की वस्तु है, वास्तविक जीवन की नहीं। शांति का येह अर्थ नहीं कि हिंसकों या अमानवों का साथ दिया जाए। शांति के प्रत्यय में अशांति के कारणों के उन्मूलन का अर्थ, भी छिपा हुआ है और इस शांति के बिना योगी जनता में यह कहता रहेगा कि शासक अधर्मी है, मूल्यहीन है । उपदेश को पुरग्रसर वना रखने का एक ही उपाय था कि महावीर या बुद्ध अनुशासित या साधक जीवन जीते। व्यक्तिगत साधना में सफल या सिद्ध व्यक्ति ही, लोक को प्रभावित कर सकता है, साधारण व्यक्ति नहीं। महात्मा इसी स्थिति और उपलब्धि का नाम है। महावीर - 'महात्मा' थे इसमें तो किसी को भी संदेह नहीं है, प्रश्न तो प्रासंगिकता का है । . . 'अनुभववादी' सिद्धों और कठोर आत्मदमन के समर्थक बुद्ध और महावीर जैसे महात्माओं में अंतर यही है कि बौद्ध और जैन विद्रोह, आत्मदमन की कठोर साधना को
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy