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________________ भगवान् महावीर : जीवन, व्यक्तित्व और विचार भगवान् महावीर ने मद्य, गांजा आदि मादक पदार्थों के सेवन का भा निषेध किया है। मद्यादि पदार्थों के सेवन से लोकनिंदा ही नहीं होती, बल्कि स्वास्थ्य के लिये भी मादकवस्तु हानिकारक है। इसी प्रकार घ् त, शिकार आदि व्यसन भी महावीर के मत से निपिद्ध हैं । क्योंकि इन व्यसनों से भी मनुष्य अपनी मान-प्रतिष्ठा को खोकर, अंत में दुःखी होता है । भगवान् महावीर के सिद्धान्त में मांस भक्षण भी सर्वथा त्याज्य है । क्योंकि उनके प्रधान सिद्धान्त 'जीवो और जीने दो' इसके लिये यह मांसभक्षण संपूर्ण विरोधी है। मांसभक्षण एक तामसाहार है । इससे भक्षक की मनोवृत्ति तामस बन जाती है। साथ ही साथ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मांस भक्षण उपादेय नहीं है। इससे अनेक रोग स्वयं उत्पन्न होते हैं । वास्तव में मनुप्य मांसाहारी नहीं है । वह शुद्ध सस्याहारी है। इसके लिये उसकी दंत रचना आदि ही बलिष्ट साक्षी है। ___मनुष्य ही नहीं बल्कि हाथी, गाय, शुक, पिक आदि अनेक जाति के पशु-पक्षी भी शुद्ध सस्याहारी हैं। मांस से शरीर का वल बढ़-जाता है, यह बात भी युक्ति संगत नहीं है । आयुर्वेद वैद्य शास्त्र के अनुसार घी में ही अत्यधिक वलवर्धक शक्ति है । देखिये अन्नादष्ट गुणं पिप्टं पिष्टादष्टगुणं पयः। क्षीरादष्टगुणं मांसं मांसादण्ट्गुणं घृतम् ।। अनेक देशी-विदेशी सुप्रसिद्ध डाक्टरों का मत है कि स्वास्थ्य के लिये मांसाहार की अपेक्षा सस्याहार ही सर्व श्रेष्ठ है। वस्तुतः भगवान महावीर का धर्म सर्वोदय तीर्थ है। इसलिये प्राचीन आचार्य संमंतभद्र ने अपने 'युक्तयनुशासन' नामक मथ के एक वाक्यांश में जैन धर्म को 'सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव' यों कहा है । इसका कारण यह है कि प्रायः सभी धर्म वाले जिसमें जीवों को शाश्वत सुख पहुंचाने की शक्ति है उसे धर्म मानते हैं । धर्म का यह लक्षण जैन धर्म में निरतिचार से, पूर्ण रूप से मौजूद है। जैन धर्म के अनुसार अपने निजस्वभाव को पाना ही प्रत्येक आत्मा का शाश्वत सुख है। इससे भिन्न और कोई सुख नहीं है। सभी सांसारिक सुख अशाश्वत हैं और त्याज्य हैं। ___इस प्रकार समस्त प्राणियों के सर्वांगीण अभ्युदय को साधनेवाले महावीर के इस धर्म को सर्वोदय तीर्थ कहा गया है । तीर्थ का नाम घाट है । जहां उतरकर मनुष्य आसानी से नदी को पार कर सकता है । इसी प्रकार जिसके द्वारा इहलोक-परलोक संबंधी सर्व अभ्युदयों को साधकर यह जीव संसार रूपी समुद्र से तर जाता है अर्थात् पार होता है उसे सर्वोदय तीर्थ कहते हैं। महावीर का धर्म समस्त जीवों के कल्याण को साधने का दावा करता है। संसार भर के सभी जीव इस तीर्थ में डुबकी लगाकर आत्मसिद्धि को प्राप्त कर सकते हैं । इस धर्म में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है । आज कल के मनुष्यों ने ही इसमें भेद की दीवार खड़ी करदी है। भवगान् महावीर ने मनुष्यों को ही नहीं, पशुपक्षियों तक को अपना कल्याणकारी पवित्र उपदेश दिया था। उनकी उपदेश सभा में किसी भी प्राणि के लिये रूकावट नहीं थी।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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