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________________ २४६ मनोवैज्ञानिक संदर्भ अर्थात् अच्छे स्वास्थ्य की सिद्धि के लिये सौमनस्य की आवश्यकता है । मन के प्रतिकूल होने पर अच्छे मार्ग से विचलित हो जाना सुनिश्चित है । इसमें 'सौमनस्य' शब्द विशेष ध्यान देने योग्य है । 'सुमनता' अर्थात् श्रच्छे मन वाला होना । ग्रच्छे मनवाला, 'सुमन' किस प्रकार हुआ जा सकता है ? मानसिक स्वास्थ्य का धनी कौन ? : एक विद्वान ने निरोग कौन रहता है यह बताते हुए कहा है नित्यं हिताहार विहार सेवी, समीक्ष्यकारी विषयेष्व सक्तः । दाता समः सत्यपरः क्षमावान् श्राप्तोपसेवी च भवत्यरोगः ॥४॥ ग्रर्थात् 'नित्य हितकर ग्राहार विहार का सेवन करने वाला, विवेकपूर्वक कार्य करने वाला, विषय भोगों में अलिप्त रहने वाला, दान, समभाव रखने वाला, सत्य ग्रहण में तत्पर, क्षमाशील और ग्रार्प पुरुषों की संगति करने वाला निरोग रहता है।' इसके अनुसार अधिकांश वातें मन से, मानसिक स्वास्थ्य से सम्वन्ध रखने वाली हैं । जो समभाव रखने वाला, सत्य और क्षमा को धारण करने वाला, सत्संगति में रहने वाला, दूसरों के कष्टनिवारणार्थं दान देने वाला है, विवेक पूर्वक कार्य करता है वह मानसिक स्वास्थ्य का धनी है । वह विपय भोगों में संयम, खानपान, रहन-सहन में संयम, हितकरता-ग्रहितकरता का विश्लेषण कर ग्रहरण तथा त्याग करने के धैर्य का प्रभाव मन पर डाल सकेगा 1. 'धर्मार्थ काममोक्षारणां आरोग्यंमूल सावनम्' धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल साधन आरोग्य है । इसलिए मन और तन से स्वस्थ रहने के साधनों, प्रक्रियायों का निर्देश धर्म के अन्तर्गत किया जाता रहा है । मानसिक विकार : 'कालिकापुराण' में मानसिक भावों को निम्न प्रकार गिनाया गया है शोकः क्रोधश्च, लोभश्च कामो मोहः परासुता । ईर्ष्या मानो विचिकित्सा कृपाऽसूया जुगुप्सता । द्वादशैते वुद्धिनाश हेतवो मानसा मलाः ॥ अर्थात् शोक, क्रोध, लोभ, काम, मोह, ग्रालस्य, ईर्ष्या, अभिमान, संशयग्रस्तता, तरसखाना, असूया व परनिंदा ये वारह मानसिक विकार बुद्धि नाश के हेतु हैं । इनके अतिरिक्त भी अधीरता, निराशावादी मनोवृत्ति, चिड़चिड़ापन, ग्रालस्य, प्रमाद ( लापरवाही), भोग लालसा की अतिशयता, चिता, कृतनिश्चयों पर ग्रमल न करना आदि और भी मानसिक विकार या मन के रोग हैं । महावीर ने यह कहा : भगवान् महावीर के उपदेशों में सर्वत्र मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक तत्वों एवं मानसिक विकारों के त्याग का निर्देश किया गया है ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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