SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ मनोवैज्ञानिक संदर्भ कंद है, आनंदमय है । अतः सुख चाहने वालों को आत्मोन्मुखी होना चाहिये । परोन्मुखी दृष्टि वाले को सच्चा सुख कभी प्राप्त नहीं हो सकता। .. श्रात्मानुभूति की सुखानुभूति : वाक्जाल और विकल्पजाल से परे अतीन्द्रिय आनन्द का विश्लेपण करते हुए भगवान् महावीर ने कहा कि-सच्चा सुख तो आत्मा द्वारा अनुभव की वस्तु है, कहने की नहीं, दिखाने की भी नहीं । समस्त पर पदार्थों पर से दृष्टि हटाकर अन्तर्मुख होकर अपने ज्ञानानन्द स्वभावी आत्मा में तन्मय होने पर ही वह प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि आत्मा सुखमय है, अतः आत्मानुभूति हो सुखानुभूति है। जिस प्रकार विना अनुभूति के आत्मा प्राप्त नहीं की जा सकती, उसी प्रकार विना प्रात्मानुभूति के सच्चा सुख भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। ___ गहराई से विचार करने पर यह प्रतीत होता है कि आत्मा को सुख कहीं से प्राप्त नहीं करना है क्योंकि वह सुख से ही बनी है, सुखमय ही है, सुख ही है । जो स्वयं सुखस्वरूप हो उसे क्या पाना ? सुख पाने की नहीं, भोगने की वस्तु है, अनुभव करने की चीज है । सुख के लिए तड़पना क्या ? सुख में तड़पन नहीं है, तड़पन में सुख का अभाव है, तड़पन स्वयं दुःख है, तड़पन का अभाव ही सुख है । इसी प्रकार सुख को क्या चाहना ? चाह स्वयं दुःखरूप है, चाह का अभाव ही सुख है। 'सुख क्या है ?' 'सुख कहां है ? ' 'वह कैसे प्राप्त होगा ?' इन सब प्रश्नों का एक ही उत्तर है, एक ही समाधान है, और वह है आत्मानुभूति । उस आत्मानुभूति को प्राप्त करने का प्रारम्भिक उपाय तत्वविचार है। पर ध्यान रहे वह आत्मानुभूति अपनी प्रारम्भिक भूमिका तत्व- विचार का भी अभाव करके उत्पन्न होती है।। 1000
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy