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________________ २३६ मनोवैज्ञानिक संदर्भ योग को कपाय के अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में लिया जा सकता है । कपाय को विद्युत लहर के रूप में और योग को उसके अभिव्यक्ति के माध्यम बल्ब, पंखा आदि के रूप मे समझा जा सकता है। जिस प्रकार विद्य त लहर विना माध्यम के अपना कार्य प्रकट करने में असमर्थ है उसी प्रकार कपाय विना योग के कर्म-बंध करने में अक्षम है। मन, वचन, काया की जिस प्रकार की प्रवृत्ति होती है उसी प्रकार के कर्म का प्रकृति वध होता है । अर्थात् क्रिया के अनुरूप ही फल मिलता है। जिस प्रकार पंखा, वल्ब, हीटर आदि जैसा माध्यम होता है वैसी ही क्रिया करता है और उसी के अनुरूप वह हवा, प्रकाश, गर्मी प्रादि फल देता है । __योग की मात्रा अर्थात् मन, वचन व काया की प्रवृत्तियों को न्यूनाधिकता ने प्रदेश बंध होता है । जिस प्रकार वल्व, पंखा, होटर आदि अपने आकार-प्रकार में जितने बड़े व सक्षम होते हैं उतना ही अधिक प्रकाश, हवा, गर्मी प्रादि देते हैं। इसी प्रकार योगों की प्रकृति या सक्रियता जितनी अधिक होती है प्रदेश बंध उतना ही अधिक होता है। कपाय की अनंतानवंबी आदि जैसी क्वालिटी होती है वैसा ही अनुभाग वध होता है । जिस प्रकार विद्य त लहर ए सी, या डी सी जैसी होती है वैसा ही पाकर्षण-विकर्षण रूप अपना परिणाम दिखाती है । इसी प्रकार कपाय, राग या टेप जिस श्रेणी का होता है वैसा ही उसका रसवंध होता है। कपाय की मात्रा या सक्रियता जितनी होती है उतना ही स्थिति बंध होता है । जिस प्रकार विद्यु त लहर जितने पावर की होती है उतनी ही अधिक प्रभावकारी होती हैं अथवा बैटरी में विद्य न उत्पादन की जितनी अधिक मात्रा है वह उतने ही अधिक काल तक अपना कार्य दिखाती है। इसी प्रकार कषाय जितनी अधिक मात्रा में होता है कर्म का फल भी उतने लंबे समय तक मिलता है । तात्पर्य यह है कि योग जैसा होगा वैसा प्रकृति बंध होगा, योग जितना होगा उतना प्रदेश बंध होगा, कपाय जैसा होगा वैसा रस बंध होगा और कपाय जितना होगा उतना स्थिति वंध होगा। । ऊपर कह पाये है कि 'योग' कषाय की अभिव्यक्ति का माध्यम या सावन है। योग के अभाव में कपोय की अभिव्यक्ति सभव नही है अतः कर्म-बंव भी सम्भव नही है। यही कारण है कि सत्ता में स्थित कर्म 'कर्न-बंध' नहीं करते हैं। उदय में आए हए कर्म ही नवीन कर्म-बंध करते हैं । योगों की सक्रियता ही कर्माण-वर्गणाओं को खींचती हैं और योगों का प्रकार कर्म-प्रकृति का निर्माण करता है तथा कपाय की तीव्रता-मंदता से कर्मो का आत्मा के साथ संश्लेपण होता है । कपाय जितना अधिक सक्रिय होता है उतनी ही दृढ़ता से कर्म आत्मा के चिपकते हैं और उतने ही अधिक काल मे वे छटते हैं। कर्म के प्रकार : भगवान् महावीर ने कर्म दो प्रकार के बताये है (क) घाती और (२) अघाती ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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