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________________ सुमति का पत्र विवेक के नाम भगवान महावीर की वे बातें जो आज भी उपयोगी हैं • श्री उमेश मुनि 'अणु' आयुप्मान विवेक ! तुम्हारा पत्र मिला। कुशल वार्ता विदित हुई। विशेप-तुमने अपनी मानसिक उलझनों का उल्लेख करते हुए भगवान् महावीर की वे बातें जो आज भी उपयोगी हैं-इस विषय में जानना चाहा है। बन्धु ! हो सकता है, कि तुम्हारी इस जिज्ञासा में आज के प्रवुद्ध जैन नवयुवकों की जिज्ञासा ही बोल रही हो । परन्तु मुझे पहले तो तुम्हारी वात जरा अटपटी लगी, क्योंकि श्रद्धा-प्रधान व्यक्ति के समक्ष ऐसी बात आने पर उसे यह आशंका होना स्वाभाविक है. कि-'क्या भगवान् महावीर की ऐसी भी बातें है, जो इस युग में निरुपयोगी हो गई हैं ?' वस्तुतः श्रद्धालु व्यक्ति को अपने श्रद्धेय की प्रत्येक वात प्रत्येक युग में उपयोगी ही प्रतीत होती है । भगवान् महावीर अपने आराध्य होने के कारण मुझे भी उनके उपदेश में कोई भी बात निरर्थक नहीं दिखाई देती है। पर मैं केवल श्रद्धा के कारण ही यह बात कह रहा हूं-ऐसा नहीं है । वस्तुतः चिन्तन-विहग काल-क्षितिज के पार पहुंच कर यही दर्शन करता है। भगवान् महावीर ने अपनी देश-काल को भेदने वाली दिव्य दृष्टि से पदार्थों की बाह्य-याभ्यन्तर सार्वकालिक अवस्थाओं को देखकर, अपने उपदेशों में जीवों की अन्तरंग वृत्तियों का विश्लेपण किया है और वृत्तियों के मलिन होने के कारणों को बता कर, उन्हें परिष्कृत करके यात्मस्थ करने की विधियां बताई हैं।' अतः जब तक जीवों में मलिन वृत्तियाँ रहेंगी, तब तक भगवान महावीर की बातें उपयोगी रहेंगी। फिर भी तुम्हारी जिज्ञासा अनुचित है—ऐसा नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि आज के साहित्यिक वातावरण, सामाजिक स्थिति, धर्म-साधकों के शिथिल मनोवल, वर्तमान की वैज्ञानिक उपलब्धियों की चकाचौंध से उत्पन्न मानवीय शक्ति के अहंकार और आधुनिक शिक्षा-पद्धति के कारण ऐसी जिज्ञासा उत्पन्न हो सकती है। जिज्ञासा, जिज्ञासा १. आस्रवो भवहेतुः स्यात्, संवरो मोक्ष कारणम् । इतीयमार्हती दृष्टि-रन्यदस्याः प्रपञ्चनम् ।।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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