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________________ वैज्ञानिकी और तकनीकी विकास से उत्पन्न मानवीय समस्याएँ और महावीर • डॉ० राममूर्ति त्रिपाठी प्रश्नाकुल स्थिति : भगवान महावीर जिन मूल्यों की प्रतिमा थे—ौर जो आज भी वंद्य हैं-वे अध्यात्ममूलक जीवन दृष्टि से जिए गए जीवन की प्रयोगशाला में उत्पन्न हुए थे। वर्तमान मंदर्भ और जीवन 'विज्ञान' प्रभावित है। विज्ञान ने आज का परिवेश निर्मित किया है, उसकी उपलब्धियां धर्माध्यात्ममूलक क्रमागत उपलब्धियों से मेल नहीं खाती, फलतः समाज के नेतृत्व सम्पन्न बुद्धिवादियों ने प्रात्मा और तन्मूलक मान्यताओं तथा मूल्यों के प्रति या तो पूर्ण अनास्था घोषित कर दी है अथवा संदिग्ध मनःस्थिति कर ली है। यदि कहीं उस क्रमागत मूल्यों के प्रति आस्था, श्रद्धा तथा विश्वास के ज्योतिकरण हैं भी, तो विज्ञान निर्मित यांत्रिक और स्वार्थकेन्द्रित व्यावसायिक वातावरण में वे मंदप्रभ होते जा रहे हैं और व्यवहार में कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं। फलतः जब सारे समाज की अाज नियति बनती जा रही है-अनाध्यात्मिकता और क्रमागत मूल्यों को अवहेलना अथवा त्याग, तव भगवान् महावीर ही नहीं, तमाम अध्यात्म मूलक मान्यताए प्रश्नाकुल हो गई हैं। अहिंसा काष्ठापन्न स्थिति में ग्राह्य होने के कारण जैन धर्म अथवा उसके प्रतिष्ठापक भगवान् महावीर की स्थिति अपेक्षाकृत और अधिक गम्भीर हो गई है। - डॉ. राधाकृष्णन ने ठीक कहा है कि समस्या को जानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उसके समाधान को जानना। अतः सबसे पहले वैज्ञानिक और तकनीकी विकास से उत्पन्न समस्याओं पर विचार आवश्यक है। विज्ञान की कठोर पद्धति का तकाजा है कि हम वही कहें और करें जो प्रमाणसिद्ध हो या किया जा सके जबकि धर्माध्यात्ममूलक पद्धति दूसरों के कथन पर विश्वास करने को बाध्य करती है। विश्वास करने के लिए इसलिए बाध्य करती है कि उसे पूर्वज मानते आ रहे हैं, उसकी सिद्धि में परम्परा प्राप्त आप्तवाक्य प्रमाण है और सबसे बड़ी बात यह कि उन्हें तर्कातीत कहा गया है। अताः खलु ये भावा न तांस्तर्केण चिन्तयेत् । वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान से धर्माव्यात्मक मूलक उक्त पद्धति को अस्वीकार घोषित कर दिया है। प्राप्तों के वचनों में भी जब परस्पर विरोध है-तब किसे श्रद्धा दी जाय ? जब इजील, कुरान, वेद और भिन्न-भिन्न आगमों में परस्पर वैमत्य है तब समस्त
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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