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________________ वैज्ञानिक संदर्भ शक्तिरूप प्रत्यय है जिसका स्वरूप तरंगात्मक है जो रेडियो, माइक्रोफोन आदि में शब्द तरंगे, विद्युत् प्रवाह में परिणत होकर आगे बढ़ती हैं और लक्ष्य तक पहुँच कर फिर शब्द रूप में परिवर्तित हो जाती हैं । शब्द को लेकर केवल एक अंतर विज्ञान से ज्ञात होता है क्योंकि विज्ञान, शब्द या ध्वनि को शक्ति के रूप में स्वीकार करता है ( Energy ) न कि पदार्थ के रूप में, जबकि जैन मत में ध्वनि पौद्गलिक है जो लोकांत तक पहुँचती है । इस सूक्ष्म अंतर के होते हुए भी यह ग्रवश्य कहा जा सकता है कि जैन दर्शन का ध्वनि-विषयक चितन आधुनिक विज्ञान के काफी निकट है जो भारतीय मनीपा का एक आश्चर्यजनक मानसिक अभियान कहा जा सकता है । २०८ इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि जैन चितकों ने परमाणु को गतिमुक्त तथा कंपनयुक्त माना है। यही नही ग्रभयदेव मूरि ने यहां तक कहा है कि परमाणु विविध कंपन करता है और वह भेदन करने में भी समर्थ है ।" मुझे अनायास हिन्दी के महाकवि श्री जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियां याद या जाती हैं जिसमें परमाणु के उपर्युक्त वैज्ञानिक रूप को एक सर्जनात्मक प्रक्रिया के द्वारा व्यक्त किया है पुत्रों को है विश्राम कहां है कृतिमय वेग भरा कितना अविराम नाचता कंपन है उल्लास सजीव हुआ कितना । ( कामायनी, कामसर्ग ) श्राइंस्टीन ने भी परमाणु के तीन प्रमुख तत्त्व माने हैं जिनके द्वारा परमाणु गतिशील होते हैं - वे है, गति ( Velocity), कंपन ( Vibration ) और उल्लास ( Veracity ) जिनका सापेक्ष सम्वन्ध ही सत्य है । परमाणु शक्ति और जैन मत : परमाणु के उपर्युक्त गतिशील स्वरूप के प्रकाश में जैन-दर्शन में परमाणु शक्ति के वारे में जो भी संकेत प्राप्त होते हैं, वे न्यूनाधिक रूप से वैज्ञानिक निष्कर्षो से समानता रखते हैं । परमाणु शक्ति के दो रूप एटम बम और हाइड्रोजन बम हैं जो क्रमशः 'फिशन' (Fission) और फ्यूजन (Fusion ) प्रक्रियाओं के उदाहरण है । फिशन का अर्थ है टूटना या पृथक होना और एटम बम में यूरेनियम परमाणुओं के इस टूटने से शक्ति का ( या ऊर्जा ) विस्फोट होता है । दूसरी ओर हाइड्रोजन बम में फ्यूजन होता है जिसका अर्थ है मिलन या संयोग । इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन के चार परमाणुत्रों के संयोग से हिलियम परमाणु बनता है । इस संयोग से जो शक्ति उत्पन्न होती है, वह हाइड्रोजन या उद्जन बम है । परमाणु की ये दोनों प्रक्रियाएं इस सूत्र वाक्य में दर्शनीय है- “पूरण गलन धर्मत्वात् २. जैन दर्शन और ग्रावुनिक विज्ञान, मुनि श्री नगराज, पृ० ३८ । २. दि निमटेशन्स ग्रॉफ साइंस, जे० मूलीवेन, पृ० १४० ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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