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________________ जैन दर्शन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण १६७ और चेतन में अनेक कारणों से विविध प्रकार के रूपान्तर होते रहते हैं । एक जड़ पदार्थ जव दूसरे जड़ पदार्थ के साथ मिलता है तब दोनों में रूपान्तर होता है, इसी प्रकार जड़ के सम्पर्क से चेतन में भी रूपान्तर होता रहता है । रूपान्तर की इस अविराम परम्परा में भी हम मूल वस्तु की सत्ता का अनुगम स्पष्ट देखते हैं । इस अनुगम की अपेक्षा से जड़ और चेतन अनादिकालीन हैं और अनन्त काल तक स्थिर रहने वाले हैं । सत् का शून्य रूप में परिणमन नहीं हो सकता, और शून्य से कभी सत् का प्रादुर्भाव या उत्पाद नहीं हो सकता है। पर्याय को दृष्टि से वस्तुयों का उत्पाद और विनाश अवश्य होता है परन्तु उसके लिए देव ब्रह्म, ईश्वर या स्वयम् की कोई आवश्यकता नहीं होती, अतएव न तो जगत् का कभी सर्जन होता है, न प्रलय ही होता है । अतएव लोक शाश्वत है । प्राणीशास्त्र के विशेषज्ञ माने जाने वाले श्री जे. बी. एस. हाल्डेन का मत है कि-"मेरे विचार में जगत् की कोई आदि नहीं है । सृष्टिविषयक यह सिद्धांत अकाट्य है, और विज्ञान का चरम विकास भी कभी इसका विरोध नहीं कर सकता।" पृथ्वी का आधार : प्राचीन काल के दार्शनिकों के सामने एक जटिल समस्या और खड़ी रही है । वह है इस भूतल के टिकाव के सम्बन्ध में, यह पृथ्वी किस आधार पर टिकी है । इस प्रश्न का उत्तर अनेक मनीषियों ने अनेक प्रकार से दिया है । किसी ने कहा....... "यह शेप नाग के फरण पर टिकी है।" कोई कहते हैं. "कछुए की पीठ पर ठहरी हुई है," तो किसी के मत के अनुसार “वराह दाढ़ पर " इन सब कल्पनाओं के लिए आज कोई स्थान नहीं रह गया है। जैनागमों की मान्यता इस सम्बन्ध में भी वैज्ञानिक है । इस पृथ्वी के नोचे धनोदधि (जमा हुआ पानी) है, उसके नीचे तनु-वात है और तनुवायु के नीचे आकाश है। आकाश स्वप्रतिष्ठित है, उसके लिए किसी अाधार की आवश्यकता नही है । ___ लोकस्थिति के इस स्वरूप को समझाने के लिए एक बड़ा ही सुन्दर उदाहरण दिया गया है । कोई पुरुप चमड़े की मशक को वायु भर कर, फुला दे और फिर मशक का मुंह मजबूती के साथ वांध दे। फिर मशक के मध्य भाग को भी एक रस्सी से कस कर वांध दे । इस प्रकार करने से मशक की पवन दो भागों में विभक्त हो जायगी और मशक डुगडुगी जैसी दिखाई देने लगेगी। तत्पश्चात् मशक का मुंह खोल कर ऊपरी भाग का पवन निकाल दिया जाय और उसके स्थान पर पानी भर कर पुनः मशक का मुंह कस दिया जाय, फिर बीच का वन्धन खोल दिया जाय, ऐसा करने पर मशक के ऊपरी भाग में भरा हुआ जल ऊपर ही टिका रहेगा, वायु के आधार पर ठहरा रहेगा, नीचे नहीं जाएगा, क्योंकि मशक के ऊपरी भाग में भरे पानी के लिए वायु प्राधार रूप है । इसी प्रकार वायु के आधार पर पृथ्वी आदि ठहरे हुए हैं। (भगवती सूत्र श० १. उ० ६) स्थावर जीवों की जीवत्वशक्ति : जैन धर्म वनस्पति, पृथ्वी, जल वायु और तेज में चैतन्य शक्ति स्वीकार करके उन्हें
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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