SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ दानियः मंदर्भ पर्यायात्मक स्थिति आती है और तब वह नये रूप में विवर्तरूप में परिवर्तित लक्षिन होता है-जैसे दूध की स्थित्यात्मक सत्ता, उसका प्रतिपेयात्मक परिवर्तन और परिवर्तन जन्य दधि रूप में विवर्तभाव । इसी प्रकार सोना द्रव्य की सत्ता, उसका अग्निक्रिया द्वारा परिवर्तन तथा विवर्तरूप कटक-कुण्डलादि । ये तीनों अस्थायें प्रत्येक भौतिक पदार्थ के साथ जुड़ी हुई हैं। यही वस्तुत: जैनदर्शन का उत्पाद, व्यय और श्रीव्य है अगवा वेदान्त और व्याकरण दर्शन का विवर्तवाद है । शब्दों का भेद हो सकता है, उदाहरग भिन्न हो सकते हैं किन्तु परिवृत्ति और निष्कर्ष एक ही यायेगा । जैसे काहीं, किसी क्षण दो-दो चार होता है वैसे ही ये अवस्थायें इसके साथ जुड़ेगी। यह विवतंवाद वैनानिक, दार्शनिक, आर्थिक तथा ऐतिहासिक सभी व्याख्याओं में खरा उतरता है कि पाश्चात्य विद्वानों को बीसवीं सदी से पूर्व भारतीय-दर्शन की विशेष जानकारी प्राप्त न हो सकी थी, इसलिए उनकी नई थीसिस नवीनतम और उपजातरूप में समाज के सामने पाई और तमतावृत्त भारतीय सिद्धान्त पीछे पड़ गया। भारतीय दर्शन जीवन, मृष्टि, प्रलय, पुनर्जन्म आदि की व्याख्या इसी कसौटी पर करते हैं, और आज के वैज्ञानिक भी अब इसी मार्ग का प्राध्य लेकर सापेक्षवाद, परमाणुवाद, द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद यादि की विवेचना करने लगे हैं। भारतीय दर्शन को नवीन व्याख्या प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, जिससे कि आधुनिक वैज्ञानिक सुवीगण तथा नवीन समाज इसके महत्त्व को और वास्तविकता को समझ सके । और, फिर एक बार नास्तिकता का खंडन होकर आस्तिकवाद, यात्मवाद का प्रचार-प्रसार हो सके जिससे कि विश्लेपण प्रधान निरा भौतिकवादी विज्ञान अध्यात्म का सुहागा पाकर खरा उतरे तथा जीवन और सृष्टि का अभ्युदय एवं निःश्रेयसकारी साधन बन सके । विना अध्यात्मवाद या आत्मदर्शन के सारी सृष्टि निप्प्रयोजन और निरुद्देश्य प्रमाणित हो जायेगी। जीवन के मूलभूत उद्देश्य चतुवर्ग के अभाव में सारी सृष्टि अचेतन-जैसी होगी और और मानव का अभ्युदय एवं निःश्रेयस रुक जायगा। ___ इस ओर आचार्य श्री तुलसी, मुनि श्री नगराज आदि ने अणुव्रत आन्दोलन द्वारा तथा प्राचार्य श्री नानालालजी महाराज ने 'समता दर्शन' द्वारा जैन दर्शन की नई वैज्ञानिक व्याख्यायें प्रस्तुत की हैं और मानव-समाज का महान हित-साधन किया है। महर्षि अरविन्द, डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिकों ने भारतीय दर्शन की नई जीवनोपयोगी व्यावहारिक व्याख्याएं प्रस्तुत की हैं तथा धर्मानन्द कौशाम्बी आदि ने भी नवीन दृष्टि इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भगवान महावीर का आचार-दर्शन, आत्म-दर्शन तथा इन दर्शनों की व्याख्यात्मक विवेचना-पद्धति न केवल वैज्ञानिक और आधुनिकतम है, प्रत्युत, मानव-समाज को सही मार्ग दिखाकर उन्हें उचित उद्देश्य की ओर ले जाने का एकमात्र साधन है।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy