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________________ ( ङ )) तो यह है कि महावीर के तत्त्व-चिन्तन का महत्त्व उनके अपने समय की अपेक्षा ग्राज, वर्तमान सन्दर्भ में कहीं अधिक सार्थक और प्रासंगिक लगने लगा है । वैज्ञानिक चिन्तन ने यद्यपि धर्म के नाम पर होने वाले बाह्य क्रियाकाण्डों, अत्याचारों और उन्मादकारी प्रवृत्तियों के विरुद्ध जनमानस को संघर्षशील वना दिया है, उसकी इन्द्रियों के विषय सेवन के क्षेत्र की विस्तार कर दिया है, श्रौद्योगिकरण के माध्यम से उत्पादन की प्रक्रिया को तेज कर दिया है, राष्ट्रों की दूरी परस्पर कम करदी है, तथापि ग्राज का मानव सुखी और शान्त नहीं है । उसकी मन की दूरियाँ बढ़ गई हैं । जातिवाद, रंगभेद, भुखमरी, गुटपरस्ती जैसे सूक्ष्म संहारी कीटाणुत्रों से वह ग्रस्त है । वह अपने परिचितों के बीच रहकर भी अपरिचित है, अजनवी है, पराया है । मानसिक कुठायों, वैयक्तिक पीड़ाओं और युग की कड़वाहट से वह त्रस्त है, संतप्त है । इसका मूल कारण है- आत्मगत मूल्यों के प्रति उसकी निष्ठा का प्रभाव | इस प्रभाव को वैज्ञानिक प्रगति और ग्राध्यात्मिक स्फुरणा के सामंजस्य से ही दूर किया जा सकता है । आध्यात्मिक स्फुरणा की पहली शर्त है - व्यक्ति के स्वतंत्रचेता अस्तित्व की मान्यता, जिस पर भगवान् महावीर ने सर्वाधिक बल दिया, और आज की विचारधारा भी व्यक्ति में वांछित मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए अनुकूल परिस्थिति निर्माण पर विशेष बल देती है । ग्राज सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर मानव-कल्याण के लिए नानाविव संस्थाएं र एजेन्सियां कार्यरत हैं। शहरी सम्पत्ति की सीमावन्दी, भूमि का सीलिंग और प्रायकरपद्धति ग्रादि कुछ ऐसे कदम है जो प्रार्थिक विषमता को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं । धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त भी, मूलतः इस बात पर वल देता है कि अपनी-अपनी भावना के अनुकूल प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म के अनुपालन की स्वतंत्रता है । ये परिस्थितियाँ मानव इतिहास में इस रूप में इतनी सार्वजनीन वनकर पहले कभी नहीं आई । प्रकारान्तर से भगवान् महावीर का अपरिग्रह व अनेकान्त - सिद्धान्त ही इस चिन्तन के मूल में प्रेरक घटक रहा है । वर्तमान परिस्थितियों ने आध्यात्मिकता के विकास के लिए अच्छा वातावरण तैयार कर दिया है । आज आवश्यकता इस बात की है, कि भगवान् महावीर के तत्त्व-चिन्तन का उपयोग समसामयिक जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए भी प्रभावकारी तरीके से किया जाय । वर्तमान परिस्थितियां इतनी जटिल एवं भयावह वन गयी हैं कि व्यक्ति अपने आवेगों को रोक नहीं पाता और वह विवेकहीन होकर ग्रात्मघात कर बैठता है । आत्महत्याओं के ये आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं । ऐसी परिस्थितियों से बचाव तभी हो सकता है जबकि व्यक्ति का दृष्टिकोण आत्मोन्मुखी वने । इसके लिए आवश्यक है कि वह जड़ तत्त्व से परे, चेतन तत्त्व की सत्ता में विश्वास कर यह चिन्तन करे कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, किससे बना हूँ, मुझे कहाँ जाना है । यह चिन्तन-क्रम उसके मानसिक तनाव को कम करने के साथ-साथ उसमें श्रात्म-विश्वास, स्थिरता, धैर्य, एकाग्रता जैसे सद्भावों का विकास करेगा ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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