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________________ विश्व-शांति के सन्दर्भ में भगवान् महावीर का सन्देश • डा० (श्रीमती) शान्ता मानावत ग्राज व्यक्ति, परिवार, समाज और विश्व मभी युद्ध की विभीपिका से अशांत और भयत्रस्त है । शीतयुद्ध और गृहयुद्ध की यह चिनगारी कभी भी विश्वयुद्ध का रूप ले सकती है। इतिहास के पृष्ठ जन-संहार और रक्तपात से भरे पड़े हैं । इस अपार नरसंहार के पीछे क्या रहस्य है ? अपना स्वार्थ-पोपण और सत्तालिप्सा । राजनीतिवेत्ताओं का कहना है कि जो राष्ट्र अर्थ, शस्त्र और धन-धान्य में समर्थ होता है, वह सदैव कमजोर राष्ट्र को दबाने की कोशिश करता है। हिंसा से वैर बढ़ता है। आज जो अशक्त है, उसे वलवान दबाता है। कमजोरी के कारण वह उसका प्रतिकार नहीं कर पाता । परन्तु जब भी वह सशक्त होगा, अपना प्रतिशोध अवश्य लेगा। इससे हिंसा-प्रतिहिमा की श्रृंखला बढ़ती चली जायेगी और इस क्रम में प्राणियों की हत्याएं होंगी, राष्ट्र की सम्पत्ति नष्ट होगी, व्यक्ति की मृजनात्मक शक्ति का ह्रास होगा और मानव-सभ्यता का सम्पूर्ण विकास निःणेप हो जायेगा । इस हिंसाजन्य क्रूर प्रवृत्ति से बचने के लिए भगवान् महावीर ने अहिंसा के मार्ग को ही श्रेष्ठ उपाय वतलाया है। १. अहिंसावाद : एक समय था जब दुनिया बहुत बड़ी थी। आज वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी विकास ने समय और स्थान की दूरी पर विजय प्राप्त कर दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है । परिणामस्वरूप दुनिया के किसी भी भाग में घटित साधारण सी घटना का प्रभाव भी पूरे विश्व पर पड़ता है । आज दो राष्ट्रों की लड़ाई केवल उन्हीं तक सीमित नहीं रहती। उससे विश्व के सभी राष्ट्र आन्दोलित हो उठते हैं और जन-मानस अशान्त और भयभीत हुए बिना नहीं रहता । भगवान् महावीर ने वैयक्तिक, मामाजिक और राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भय-मुक्ति के लिए अहिंसा-सिद्धान्त का उद्घोप किया। उन्होंने बड़ी दृढ़ता के माथ कहा-सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। सवको अपना जीवन प्रिय है । मनुप्य तो क्या उन्होंने पृथ्वी जल, अग्नि, वायु, वनस्पति के जीवों की रक्षा करने तक की पहल की है । अखण्ड मृष्टि के प्रति यह प्रेममार्ग ही विश्व-शांति का मूल है।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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