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________________ १३० राजनीतिक संदर्भ उन नीतियों के प्रति भी आदर होता है (होना चाहिए), जिन्हें गुट निरपेक्ष राष्ट्र अपने लिए हितकर नहीं मानते । (ग) जिस प्रकार अनेकान्तवाद दूसरे के विचाने की सत्यता, प्रामाणिकता और स्वायत्तता को स्वीकार करता है उसी प्रकार गुट निरपेक्षता में भी अन्य राष्ट्रों की नीतियो. उनकी सार्वभौमिकता और स्वतन्त्रता के प्रति सम्मान का भाव प्रधान है। दोनों में कितना साम्य : _ इसके अतिरिक्त अनेकान्त और गुट निरपेक्षता में कारगत और कार्यगत नाम्य भी है । अनेकान्त का जन्म वैचारिक हिंसा को रोकने के लिए हरा था, गुट निरपेक्षता की आवश्यकता की प्रतीति भी मानवीय हिंसा को रोकने के लिए हुई है। अनेकान्त का उद्देश्य विचार-जगत में व्याप्त कोलाहल को शांत करना है, गुट निरपेक्षता का उद्देश्य भी विश्व में व्याप्त अशान्ति को दूर करना है । अनेकान्तवाद पर विचार करते हुए, आज की विश्व की विषम परिस्थितियों को देखते हुए, आये दिन युद्ध की खबरें सुनते हुए, मुझे लगता है कि संसार को बाज जहां होना चाहिए था--विश्वशांति और विश्ववन्धुत्व की कल्पना को साकार बनाने के लिए संसार को जहां आज नहीं तो कल पहुँचना ही होगा--वहां भगवान महावीर के अनेकान्त दृष्टिकोण के रूप में भारत पच्चीस सौ वर्ष पूर्व ही पहुंच चुका था। अनेकान्तवाद धर्म और दर्शन को सामाजिक व्यवहार से जोड़ता है। इमीलिए अनेकान्त शैली पर गुट निरपेक्षता राजनीति को सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ती है। कोई भी गुट तभी निर्मित होता है जब हम किसी भी 'वाद' को एकान्तिक रूप से सत्य मानकर न केवल अन्य सभी वादों की उपेक्षा करते हैं, बल्कि उन्हें असत्य ठहरा देते हैं । आज साम्यवादी समझते हैं कि प्रजातान्त्रिक राष्ट्र गलत राह पर हैं और प्रजातान्त्रिक देश समझते हैं कि साम्यवादी दिशा दृष्टिहीन है। इन्हीं असहमतियों से पहले नीति जगत् में कोलाहल पैदा होता है और फिर धीरे-धीरे युद्ध के खतरे सागने आ जाते है। इन स्थितियों से बचने के लिए इन्हें पैदा न होने देने के लिए और अपना सहज विकास करने के लिए गुट निरपेक्षता उसी प्रकार एक सर्व मुलभ उपाय है जिस प्रकार पच्चीस सौ वर्ष पूर्व धार्मिक, दार्शनिक विवादों में न पड़ने के लिए, प्रचलित वार्मिक विवादों को शान्त करने के लिए और यात्म-विकास के लिए भगवान् महावीर का अनेकान्त दृष्टिकोण एक स्वीकृत साधन था । राजनीति को सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने की प्रक्रिया : ऊपर मैंने कहा है और यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि गुट निरपेक्षता राजनीति को सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का प्रयास है । यदि गुट निरपेक्ष राष्ट्र गुटबद्ध राष्ट्रों की नीतियों के प्रति उतने ही अनुदार और निन्दक हो जाएं, उनके अपने ही स्वार्थ प्रधान हो जाएं, तो गुट निरपेक्षता भी आगे चलकर एक प्रकार के गुट का रूप धारण कर लेगी। आज के राष्ट्रों की परस्पर उलझनों के कारण तटस्थ राष्ट्रीय नीतियों के सामने यह खतरा
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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