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________________ राजनीतिक संदर्म स्थितियों से घिरा हुआ है कि इसके उद्धार के लिए तटस्थ एवं निराग्रही दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कोई भी आग्रहपूर्ण चिन्तन, कोई भी आग्रही विचारक बाज के ससार की जटिलताओं को कुछ और उलझा देने के सिवाय कुछ भी नहीं दे सकता। और जब भी ऐसी परिस्थितियां पाई है या जब भी किसी चितक ने या महापुरुप ने संसार को कुछ दिया है तो वह निश्चित ही तटस्थ चिंतन का अनुमोदक रहा है। ईसामसीह भी अनेकान्तवाद के पोपक थे। उनका कहना है "मेरे पिता के यहां अनेक मकान हैं, मैं किसी भी मकान को तोड़ने नहीं आया, प्रत्युत् सवकी रक्षा और पूर्णता मेरा उद्देश्य है ।" गुट निरपेक्षता के मूल में अनेकान्त : आज विश्व के सभी गप्ठ परस्पर का विश्वास खो बैठे हैं और कोई भी राष्ट्र कभी भी किसी भी राष्ट्र की पीठ पर प्रहार कर सकता है। आखिर ऐसा क्यों ? यह इसलिए कि आज मभी राष्ट्र अन्य राष्ट्रों के समक्ष अपने आपको अधिक शक्तिशाली और सम्पन्न रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, तथा दूसरे राष्ट्रों की शक्ति एवं सम्पन्नता के प्रति अनुदार एवं असहिष्णु है । शक्ति और मम्पन्नता की होड़ में ही आज की सम्पूर्ण मानव जाति की गक्ति का अपव्यय हो रहा है तथा शक्ति और सम्पन्नता को बढ़ाने के उद्देश्य से ही समान स्वार्थों वाले राष्ट्रों ने मिलकर अपने-अपने गुट बनाकर खड़े कर लिए हैं। ये गुट, चाहे वे साम्राज्यवादी हों या साम्यवादी हों, विश्व के विनाश की भूमिका तैयार कर रहे हैं । इसीलिए भारत ने गुट निरपेक्षता को नीति अपनाई है। इस गुट-निरपेक्षता के मुल में अनेकान्तवाद प्रेरणा के रूप में सक्रिय था-यह तो मैं नहीं कह सकता, किन्तु यह अवश्य कहूंगा कि चिन्तन में और धार्मिक समन्विति के क्षेत्र में जो अनेकान्तवाद था, मामान्यतया राजनीति के क्षेत्र में वही गुटनिरपेक्षता है । अनेकान्त दृष्टिकोण : सत्य की तलाश : लोक और जीव की नित्यता, अनित्यता, जीव और शरीर के भेदाभेद आदि प्रश्नों पर भगवान् बुद्ध मौन रहे, तथा इनको 'ग्रव्याकृत' कह दिया । ये प्रश्न भगवान् बुद्ध के अहम् प्रश्न थे। भगवान् बुद्ध ने इनका उत्तर इसलिए नहीं दिया, क्योंकि वे तत्कालीन प्रचलित दार्शनिक वादों में किसी से प्रतिवद्ध नहीं होना चाहते थे। यदि वे ईश्वर और आत्मा को नित्य एवं सत्य कहते तो उन्हें किन्हीं अंगों में उपनिषद्-समर्थित शाश्वततावाद को स्वीकार करना पड़ता, और यदि वे इन्हें अनित्य और असत्य कहते तो एक प्रकार से उन्हें चावकि-जैसे उच्छेदवादियों का समर्थन करना पड़ता । पर भगवान् महावीर ने तत्कालीन प्रचलित इस प्रकार के मभी वाद-विवादों की परीक्षा की और जिसमें जितना ग्राह्य सत्य था, उसे उतनी ही मात्रा में स्वीकार करके, सभी वादों का समन्वय किया। जिन प्रश्नों के उत्तर में भगवान् बुद्ध मौन रहे, उन्हीं का उत्तर अनेकान्तवाद के आश्रय से भगवान महावीर ने दिया। इस बात की पुष्टि में यहां एक उदाहरण देना समीचीन होगा "लोक की सान्तता और अनन्तता के विषय में भगवान महावीर का कहना है कि द्रव्य की अपेक्षा से लोक शान्त है, क्योंकि यह संख्या में एक है, किन्तु भाव अर्थात् पर्यायों
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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