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________________ समाजवादी अर्थ व्यवस्था और महावीर किन्तु तब तक भी व्यक्तिवाद ही प्रमुख रूप से प्रचलित था ग्रर्थान् व्यक्ति की ही सत्ता समाज व्यवस्था की धुरी थी । व्यक्तियों का सह-जीवन जरूर था किन्तु सत्ता में तब भी व्यक्ति ही रहा । पहले सामन्त समाज को चलाता था वह एक स्थान पर बैठता था, किन्तु सर्वत्र घूमने वाले पूंजीपति ने अपनी पूंजी के बल पर उससे ऊंची और विस्तृत सत्ता हथियाली । इती पूंजीवाद ने जब राष्ट्रीय सीमाएं लांघकर यागे बढ़ना शुरू किया तो अन्य देशों में वह अर्थ के बल पर राज्य सत्ता हथियाने लगा । इसने ही साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को जन्म दिया । व्यक्तिवादी व्यवस्था का यह चरम रूप था जो afterयकवाद तक फैला । && सामाजिक शक्ति का प्रभ्युदय : व्यक्ति से ही समाज वनता है किन्तु संगठित समाज स्वयं एक नई शक्ति के रूप में उभरता है. उनकी अनुभूति व्यक्तिवादी व्यवस्था के चरम विन्दु तक पहुँचने पर होने लगी । जब तक राजतंत्र समूह तंत्र और पूंजी तंत्र चला-व्यक्ति के व्यक्तित्व में सामाजिकनिसार नहीं श्राया किन्तु इन तंत्रों की बुराइयों ने विपम रूप ग्रहण करके व्यक्ति जाग्रति का श्रीगणेश किया । परस्पर सहकार की दृष्टि से सामाजिकता का विकास तो पहले हो चुका था किन्तु सामाजिक शक्ति का प्रभ्युदय १७वीं शताब्दी ( ई०प०) से ही होने लगा | इंगलैंड में राजा की जगह संसद् प्रभावशाली होने लगी तो ऐसे ही जनवादी परिवर्तन अन्य देशों में भी प्रारम्भ हुए । एक-जन का मूल्य कम होने लगा, सर्वजन का महत्त्व बढ़ने लगा | सामाजिक शक्ति के अभ्युदय ने ही ग्राधुनिक समाजवादी दर्शन एवं अर्थ व्यवस्था को जन्म दिया । राज्य सत्ता के ग्राधार पर ही पूंजीवाद भिन्न-भिन्न देशों में साम्राज्यवाद के रूप में पनपा था, अतः इस नवोदित सामाजिक शक्ति ने राज्य सत्ता प्राप्त करने को अपना पहला लक्ष्य बनाया कि जिसके बल पर राजनीतिक से लेकर आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तनों का सूत्रपात किया जा सके। इस विचार ने जनतंत्र को जन्म दिया । जनता का, जनता के लिये, जनता द्वारा शासन हो - यह जनतंत्र का आधार बिन्दु बनाया गया । राजनैतिक रूप से जनतंत्र के प्रयोग के साथ-साथ ग्रार्थिक दृष्टि से समाजवादी अर्थ - व्यवस्था का विचार पैदा हुआ और अलग-अलग रूपों में फैला । यूरोपीय क्षेत्रों में विभिन्न विचारकों ने समाजवाद के विचार को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया तथा उसे अलग-अलग नाम दिये । किन्तु जर्मनी के दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने समाजवादी दर्शन को ऐसा मूर्त रूप दिया जो ग्रार्थिक के साथ एक सम्पूर्ण जीवन पद्धति का चित्र उपस्थित करता था और जब इस दर्शन को रूस, चीन आदि राष्ट्रों ने व्यवहार में लिया तो देश, काल के भेद को छोड़कर यह व्यक्तिवादी समाज-व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने की दृष्टि से समान रूप से उपयोगी सिद्ध हुआ । कार्ल माक्स का समाजवादी दर्शन : मनुष्य को प्रगति का मूल बताते हुए मार्क्स के समाजवादी दर्शन का सार यह CAS 15. yet they went for "*
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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