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________________ ८८ : सामाजिक संदर्भ अपरिग्रह को आश्रम-व्रतों में स्थान देते हुए कहा-हम किसी भी वस्तु के स्वामी नहीं हैं, स्वामी समाज है । समाज की अनुमति से ही हम वस्तुओं का उपयोग कर सकते हैं । हम केवल ट्रस्टी हैं । वास्तव में चुराया हुआ न होने पर भी अनावश्यक संग्रह चोरी का माल हो जाता है । इस प्रकार नवीन एवं मुखी समाज की रचना में महावीर का अपरिग्रहवाद ही एकमात्र विपमता को दूर करने का उपाय सिद्ध हो सकता है। महावीर ने अध्यात्म के द्वारा जगन् और जीवन की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया । मंमार के दुःखातुर प्राणियों के समक्ष उन्होंने एक सच्चा सीधा मार्ग उपस्थित किया है । जीवन और पुद्गल दोनों ही स्वतन्त्र हैं किन्तु यह जीव अनानवश अनादिकाल से पुद्गल को अपना मानकर अनन्त संसार का पात्र , रहा है और आवागमन के चक्र में पड़कर दुःखी हो रहा है। इस प्रकार महावीर ने मानव को आत्मकल्याण की ओर प्रेरित किया । आज भौतिकतावाद का बोलवाला है । अध्यात्मवाद के द्वारा मानव जीवन संतुलित किया जा सकता है। महावीर के सिद्धान्त आज २५०० वर्ष बाद भी उतने ही प्रभावक एवं वैज्ञानिक हैं और गांधोजी ने इन सिद्धान्तों पर चलकर एक अहिंसक क्रांति की । नवीन समाज रचना में महावीर की विचारधारा मानव के लिए त्राण प्रस्तुत करने वाली है । उत्पात-व्ययध्रुव-युक्त जो सत् पदार्थ है, वही यथार्थ एवं वास्तविक स्थिति है । इस प्रकार महावीर का चितन प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक है और वह आधुनिक चेतना से अोतप्रोत है। ( ३ ) परस्पर उपकार करते हुए जीना . . ही वास्तविक जीवन श्री मिश्रीलाल जैन भारतीय समाज जर्जर हो गया है । स्वतन्त्रता के सूर्योदय के साथ उसने सामाजिक, आर्थिक, नैतिक अभ्युत्थान के स्वर्णिम सपने अपनी आंखों में वसाए थे वे विखर चुके हैं। प्राचीन संस्कृति सांसें तोड़ रही हैं । समाज पाश्चात्य सभ्यता के अंघे अनुसरण में व्यस्त है। पाश्चात्य सभ्यता भौतिक प्रवृतियों के आधार पर विकसित हुई है और भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक सिद्धान्तों के आधार पर, इस कारण पाश्चात्य सभ्यता मे उसका समन्वय नहीं हो पा रहा है। भारतीय संस्कृति संक्रामक काल से गुजर रही है। वैज्ञानिकों के नृजक हाथ अणु-हाईड्रोजन जैसे विनाशक अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण में व्यस्त है । यद्यपि वैज्ञानिक शोवों ने मानव हृदय में जमी हुई अंध विश्वास की पतों को दूर करने का सम्यक् कार्य किया है किन्तु दुर्भाग्य से वैज्ञानिकों की प्रतिभा का उपयोग अनुपातिक रूप से निर्माण कार्यों में कम और युद्धोपयोगी विनाशक सामग्री के निर्माण में
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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