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________________ सामाजिक संदर्भ समाज हित के अनुकूल उत्पादन और उपभोग करने की कर्तव्य भावना हो उनके उत्पादन और उपभोग को इस प्रकार नियंत्रित करें कि उससे विषमताएं पैदा होकर समाज हित विरोधी न हो जावे । जब इस समय भी प्रत्येक लोकतान्त्रिक सरकार का खाद्य पदार्थों यदि आवश्यकता की वस्तुओंों तक के उत्पादन और उपभोग पर नियन्त्रण है तो विलासिता आदि की अनावश्यक वस्तुओं के सम्बन्ध में यह सम्भव क्यों नहीं हो सकता ? ८४. कहा जाता है कि धनवानों और सावन सम्पन्न अधिक योग्यता वाले लोगों को विलासिता के साधन उपलब्ध नहीं होने दिये जावेगे तो लोगों में अच्छा काम करने की प्रेरणा व रुचि नहीं रहेगी । यह भी भ्रम मात्र है । प्रस्तावित व्यवस्था में लोगों को अपनी-अपनी योग्यता, काम, प्रतिभा व उत्तरदायित्व के अनुरूप वेतन, लाभ तथा चादर प्रतिष्ठा तो मिलेगी ही ऋतः अच्छा से अच्छा काम करने की प्रेरणा मिल सकेगी । प्राचीन भारत में धनवानों का रहन-सहन अधिकांशतः सादा ही होता था । अपनी-अपनी योग्यता तथा प्रतिभा के अनुरूप लाभ व प्रतिष्ठा मिलने से उन्हें उससे तो अपने काम में प्रेरणा मिलती ही थी, साथ ही सादा जीवन के कारण घन का संग्रह ग्रनावश्यक हो जाने से उसका उपयोग जनहित के कार्यों में करके समाज में आदर व प्रतिष्ठा प्राप्त करने की तथा पुण्य वंध की भावना होती थी, उससे भी इन्हें प्रेरणा मिलती रहती थी । इस प्रकार यह विचारद्वारा मिथ्या है कि उत्पादन बढ़ाने व वैज्ञानिक विकास में लोगों को प्रेरणा देने के लिए विलासिता के सुख साधनों का उपलब्ध कराना 'श्रावश्यक है । वास्तविकता तो यह है कि संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं एवं जिन्होंने बड़ी-बड़ी वैज्ञानिक खोजें की हैं व समाजहित के बड़े-बड़े काम किये हैं उनका सादा व संयमी जीवन ही था । भोगविलास व शानशौकत का जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति तो संसार पर सर्वदा भार रूपी होकर रहे हैं । वे वातें तो करते हैं उन लोगों के हित की, उनकी गरीबी दूर करने, रहनसहन का स्तर ऊंचा करने की कि जिनकी मूलभूत आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पा रही हैं, परन्तु अधिकांश साधनों का उपयोग किया जा रहा है व अरबों रुपया उधार लिया जा रहा है साधन सम्पन्न लोगों की भोगविलास की तृष्णा को पूरा करने एवं अनेक शान्शौकत व विलासिता के सावन पैदा करने में । यह सही है कि जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है गई है कि उस पर नियंत्रण न किया जा सके । वैज्ञानिक विवेकपूर्वक उपयोग किया जाय तो मूलभूत ग्रावश्यकताओं की में अनेक वर्ष लगजाने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता । न इसके अनेक बड़े-बड़े कारखाने लगाने की प्रावश्यकता है क्योंकि मशीनों के उपयोग का उसी सीमा तक ग्रौचित्य है यदि संसार में जो प्रशांति है, वर्ग संघर्ष तथा चरित्र संकट ने भी उत्पादन में प्रेरणा देने के नाम पर अनेक प्रकार के जा रहे हैं, उसके कारण ही है। नेताओं ने रहन-सहन का स्तर ऊंचा करने की होड़ पैदा करदी है ! उसी के लिए लोग तथा जिनकी मूलभूत श्रावश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पाती · पर वह अभी इतनी नहीं बढ़ साधनों तथा भूमि का यदि पूर्ति होकर गरीबी दूर होने लिए विदेशों से उधार लेकर प्राकृतिक साधन सीमित हैं और उससे बेकारी न फैले। इस समय उग्र रूप धारण कर रखा है वह भोग-विलास के साधन पैदा किये
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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