SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ सामाजिक संदर्भ राज्य-कुल और असीम वैभव के मध्य चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन महावीर का जन्म हुया और यौवनावस्था को प्राप्त करते-करते उनका कद सात हाथ लम्बा और सुगठित गौरवर्ण-देह का सौन्दर्यमय व्यक्तित्व और राजकीय वैभवपूर्ण वातावरण उन्हें सांसारिक भोग-विलास की चुनौती देता रहा। जैनों की दिगम्बर परम्परा के अनुसार वे ब्रह्मचारी व अविवाहित रहे । श्वेताम्बर परम्परा की शाखा के अनुसार वे भोगों के प्रति आसक्त नहीं हए । ऐतिहासिक तथ्यों व जैन आगमों के अनुसार समरवीर नामक महासामन्त की सुपुत्री व तत्कालीन समय की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी यशोदा के साथ उनका विवाह हुया और प्रियदर्शना नामक एक कन्या भी उत्पन्न हुई। तो महावीर ने नारी को पत्नी के रूप में जाना। वहन सुदर्शना के रूप में वहन का स्नेह पाया और माता त्रिशला का अपार वात्सल्य का सुख देखा । अट्ठाइस वर्ष की उम्र में माता से दीक्षा की अनुमति मांगी, अनुमति न मिलने पर मां, वहन, पत्नी व अवोध पुत्री की मूक भावनाओं का आदर कर वे गृहस्थी में ही रहे। दो वर्ष तक यों योगी की भांति निर्लिप्त जीवन जीते देख पत्नी को अनुमति देनी पड़ी। महावीर व बुद्ध : ___ महावीर व बुद्ध में यहां असमानता है। महावीर अपने वैराग्य को पत्नी, मां, बहन व पुत्री पर थोप कर चुपचाप गृह-त्याग नहीं कर गए । गौतमबुद्ध तो अपनी पत्नी यशोधरा व पुत्र राहुल को आधीरात के समय सोया हुआ छोड़कर चले गए थे। सम्भवतः वे पत्नी व पुत्र के प्रांसुओं का सामना करने में असमर्थ रहे हों। पर बुद्ध ने मन में यह नहीं विचार किया कि प्रातः नींद खुलते ही पत्नी व माता की क्या दशा होगी? इसके विपरीत महावीर दो वर्ष तक सबके बीच रहे । परिवार की अनुमति से मार्गशीर्ष कृपणा दशमी को वे दीक्षित हो गए। दीक्षा लेने के उपरान्त महावीर ने नारी जाति को मातृ-जाति के नाम से सम्बोधित किया । उस समय की प्रचलित लोकभापा अर्धमागधी प्राकृत में उन्होंने कहा कि पुरुष के समान नारी को धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएं । उन्होंने बताया कि नारी अपने असीम मातृ-प्रेम से पुरुष को प्रेरणा एवम् शक्ति प्रदान कर समाज का सर्वाधिक हित साधन कर सकती है । विकास की पूर्ण स्वतंत्रता : ___ उन्होंने समझाया कि पुरुष व नारी की आत्मा एक है अतः पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी विकास के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता मिलनी ही चाहिए। पुरुप व नारी को आत्मा में भिन्नता का कोई प्रमाण नहीं मिलता अतः नारी को पुरुप से हेय समझना अज्ञान, अधर्म व अतार्किक है। __ गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी स्वेच्छा से ब्रह्मचर्य पालन करने वाले पति-पत्नी के लिए महावीर ने उत्कृष्ट विधान रखा । महावीर ने कहा कि ऐसे दम्पति को पृथक् शैया पर ही नहीं अपितु पृथक् शयन-कक्ष में शयन करना चाहिए। किन्तु जब पत्नी पति के सन्मुख जावे तब पति को मधुर एवम् आदरपूर्ण शब्दों में स्वागत करते हुए उसे वैठने को
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy