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________________ __ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य । [३३ ही स्वयं इसे रचकर कवि सम्मेलनमें प्रस्तुत किया होगा। अतः इस ग्रन्थको एलाचार्य कृत कहना ही भ्रमात्मक है। यदि यह भी मान लिया जाय कि इस ग्रन्थके रचयिता एलाचार्य ही थे तो इस नामके आचार्य एक दूसरे ही विद्वान हैं । हमारे चरित्रनायक न तो द्राविड़ संघके अध्यक्ष थे और न उनका अपरनाम एलाचार्य था, जैसा पहले सिद्ध किया जा चुका है। अतः कुरल प्रणेता कुन्दकुन्द आचार्य नहीं थे। इसके अतिरिक्त धवलाटीका जो शा० सं० ७३८ (दि. सं. ८७३) में समाप्त हुई, उसकी प्रशस्तिमें उसके रचयिता श्री वीरसेनाचार्यने एलाचार्यको अपना गुरु निर्दिष्ट किया है, जिससे जान पड़ता है कि एलाचार्य विक्रमकी नवीं शताब्दिके विद्वान थे। यदि यह एलाचार्य कुरलके कर्ता थे तो कुरलका रचना समय भी विक्रमकी ९ वीं शताब्दि ही होसकता है। अतः यह ग्रंथ विक्रमकी तीसरी शताब्दिमें होनेवाले कुन्दकुन्दाचार्यकी कृति नहीं होसकती। - परिकर्म । इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतारमें पखंडागमादि आद्य महाशास्त्रों के प्रणयनका वर्णन करते हुये लिखा है कि जब दोनों ग्रंथ पूर्णतः संहृत होगये तो गुरुपरिपाटीसे कुन्दकुन्दस्वामीने इनका अध्ययन किया, और पटखंडागमके-आदि तीन खंडोंकी १२ हजार श्लोक परिमाण परिकर्म नामक टीका लिखी। विबुध श्रीधरने स्वरचित पञ्चाधिकार शाके श्रुतावतार नामक
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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