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________________ । ८] निर्दोष करनेके भावसे इनका जीवनचरित्र सम्पादन करनेका कई वर्षोंसे मेरा विचार होरहा था परन्तु मैं यथेच्छित सामग्री और योग्य साधन न मिलनेके कारण इस महत् कार्यमें सफल-मनोरथ न होसका । अब प्रोफेसर ए० एन , उपाध्यायने उक्त आचार्य रत प्रवचनसारका आंग्ल भाषामें अनुवाद किया और उपक्रम रूपसे उनके जीवनपर भी एक वृहद लेख लिखा जिसमें उन्होंने आचार्यवरके जीवनचरित्र सम्बंधी प्रत्येक विषयका निष्पक्ष और निर्भीक भावसे अनुसंधान किया, उसे पढ़कर मेरी सुशुप्त इच्छा पुन: जागृत होगई । तब मैंने अपनी दीर्घकालीन हृदयस्थ भावनाको अपने मित्र सेठ मूलचंद किंसन्दास कामडिया सूरत पर प्रकट किया, जिन्होंने मेरी सदिच्छाको अनुमोदना करते हुये मेरी प्रार्थनापर मुझे यथार्थ सहयोग दिया। जिसके फल. स्वरूप में आचार्यवरका एक संक्षिप्त जीवनचरित्र उपस्थित कर रहा हूं। मुझे अत्यन्त हर्ष है कि आज मैं अपनी चिरस्थित इच्छाकी पूर्ति करके आचार्यवरकी गुरुदक्षिणासे उऋण होरहा हूं। आशा है कि समाज मी इसका यथोचित आदर करके कृतघ्नताके दोपसे मुक्त हो सकेगा। अंतमें मैं सेट मूलचन्द किसनदासजी कापडिया संपादक दिगम्बर जैन व जैनमित्र सूरतका जिन्होंने मुझे साहस और सहयोग दिया, प्रोफेसर उपाध्याय, पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार सरसावा और अन्य सज्जनोंका जिनके लेखोंसे (प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे ) इस कार्यमें मुझे सहायता मिली है कृतज्ञ हूं, वे सभी महानुभाव धन्यवादके पात्र हैं। बुलन्दशहर यू० पी० विद्याभूषण 'दरखशां' २५-१२-४१ । " -लेखक।
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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