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________________ (७) शान्तिपाठ ।* रूप चौपाई (१६ मात्रा) शांतिनाथमुख शशिउनहारि, सीलगुणव्रतसंजमधारी । लखन एकसौआठ विराजै.निरखत नयन कमलदले लाजै॥१॥ पंचमचक्रवर्तिपदधारी, सोलम तीर्थंकर सुखकारी । इन्द्रनरेन्द्रपूज्य जिननायक, नमो शांतिहित शांतिविधायक ॥२॥ दिव्य॑विटपपहुपनकी वरसा, दुंदुभि आसन वाणी सरसा । छत्र चमर भामंडल भारी, ये तु प्रातिहार्य मनहारी ॥ ३ ॥ शांति जिनेस शांतिसुखदाई, जगतपूज्य पूजो सिर नाई। परमशांति दीजै हम सबको, पढ़ें जिन्हे पुनि चार संघको ॥४॥ वसन्ततिलका। पूजें जिन्हे मुकुट हार किरीट लाके, इन्द्रादिदेव, अरु पूज्य पदार्ज जाके । सो शांतिनाथ वरवंशजगत्पदी, मेरे लिये करहिं शांति सदा अनूप ॥५॥ इन्द्रवज्रा। संपूजकोंको प्रतिपालकोंको, यतीनको औ यतिनायकोंको । राजा प्रजा राष्ट्र सुदेशको ले, कीजे सुखीहे जिन शांतिको __ * शातिपाठ बोलते समय दोनों हाथोंसे पुष्पवृष्टि करते जाना चाहिये। १ चन्द्रमाके समान । २ लक्षण । ३ कमलके पत्ते । ४ अशोकादि कल्पवृक्षके । ५ पुष्पोंकी। ६ दिव्य बनि । ७ तुम्हारे। ८ मृकुट । ९ चरणासविंद । १० जगतको प्रकाशित करनेवाले । ११ साधुओंको । १२ देश।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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