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________________ २६ ] बालबोध जैन धर्म । अन्तराय कर्म कार्यों में विघ्न किया करता है। मोहन रोटी खा रहा था, अकस्मात बन्दर आकर हाथसे गेटी छीन ले गया, तो मोहनके अन्तराय कमका उदय समझना चाहिये। किमीको लाभ होता हो उसे न होने देना. बालकोंको विद्या न पढाना, अपने आधीन नौकर चाकरको धर्म सेवन न करने देना, दान देते हुएको रोक देना, दृसरेकी भोगने योग्य वस्तुओंको बिगाड देना, ऐसे कामोसे अन्तराय कर्म बंधता है। प्रश्नावली। १-हमको मनुष्य किसने किया और तुम्हार मुंह, नाक, कान किसने बनाये ? २-कर्म किसे कहते है? इनमे फल देनेकी शक्ति कैसे पैदा हो जाती है ? ३–सबसे बुरा कर्म कौनमा है ? और तुम्हारे इस समय कौन कौन कर्मों का आवरण है ? ४-असातावेदनीय, ज्ञानावरणी और गोत्र कर्मके बन्धके कौन कौन कारण हैं ? ५-सातावेदमीय, दर्शनावरणीय और मोहनीय कर्म क्या क्या काम करते हैं ? ६-बताओ इनके किस कर्मका उदय है ? (क ) यद्यपि गोपाल धर्मका स्वरूप सच कहता है, तथापि लोग उसकी निन्दा करते हैं। (ख) राम सुबहसे लेकर शाम तक पाठ याद करता है, परन्तु उसे याद नहीं होता।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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