SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६] बालबोध जैन धर्म।। ____ अनुभव माणिक, पारखी', जौहरी आप जिनन्द । येही वर मोहि दीजिये, चरन शरन आनन्द ॥३५॥ नोट-यह आलोचना पाठ दर्शन और तोपो पी भगवानो __ दाहिनी और सामने बठकर पदना नाहिगे। प्रदनावली। १ -आलोचना किसे कहते हैं ? इस पाटको कब और क्यों पहना चाहिये ? २-" हा ! हा! मै दुट अपराधी " यहांसे लेकर " हम रताये धरि आनन्दा " तक पहो। ३-आदिके चार छन्द और अन्तके दोहे पढ़ो। ४-पंच उदुम्बर, अष्ट मूलगुण, म्प्त व्यसन, पांच मिथ्यात्व. पांच पाप पाच इन्द्रिय, चार गति, सोलह कषाय, इनके केवल नाम बताओ। ५-केवलज्ञानी, अन्तरजामी, अरति, सजीव, परलोक जिवानी. अभक्ष, परमात्मपद, इन्द्र इनसे क्या समझते हो ? ६-सीता, द्रौपदी और अंजनचोर इनके विषयमें जो कथायें प्रसिद्ध है उन्हें सुनाओ। ७–पाठमें जो “ शत आठ जु इन भेदनते" आया है सो १०८ भेद गिनकर बताओ। ८-इस पाठमें जो छन्द अत्यन्त प्रेम और नम्रता लिये हों, उनको पढो। १-आत्माका अनुभव, २-एक प्रकारका रत्न, ३-परखनेवाले हैं। हे जिनेन्द्र | आप स्वात्मानुभवरूपी रत्नके परीक्षक जौहरी हैं, मुझे यही वरदान दीजिये कि मै आपके चरणोंकी शरणका आनन्द लेता रहू ।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy