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________________ १४ बालबोध जैन-नर्म। छठा पाठ। कपाय। कपाय---उसे कहते हैं. जो आत्माको कमै अति दुःख दे, ऐसी कपायें चार है-१-क्रोध, २-मान, ३-माया, ४-लोभ । १-क्रोध-गुस्सेको कहते हैं। २-मान-घमण्डको कहते हैं । ३-माया-छलकपट करनेको कहते हैं अर्थात् मनमें और, वचनमें और, करे कुछ और ।। ४-लोभ-लालच और तृष्णाको कहते हैं। ये चागे ही कषायें पापनन्धकी मुख्य कारण है और जीवको बहुत दुःख देनेवाली हैं। ताः क्रोध कभी मत करो, मान कपाय न मनमें धरो। माया मन वच तन हरो, लालचमाहि काहु मन परो ॥ प्रश्नावली। (१) कषायें कितनी है, नाम सहित बताओ? (२) कपायें करनेसे तुम्हारी क्या हानि है ? ( ३ ) लाल वी और घमण्डी आदमी के कौन कौनसी कषायें होती हैं? (४) एक विद्यर्थी जो पढ़ने लिखने में बड़ा चतुर है, दूमरे विद्यार्थीको जो पढ़ने-लिखने में कमजोर है, पूछने पर कुछ भी सहायता
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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