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________________ (६५) १ अशुभ-इस नामकर्मके उदयसे शरीरके अवयव (हिस्से ) भद्दे होते हैं। १ सुभग-इस नामकर्मके उदयसे दूसरे जीवोंको अपनेसे मीति होती है। १ दुर्भग—इस नामकर्मके उदयसे दूसरे जीव अपनेसे अभीति वा वैर करते हैं। १ सुस्वर- इस नामकर्मके उदयसे स्वर अच्छा होता है। १ दुःस्वर-इस नामकर्मके उदयसे स्वर अच्छा नहीं होता है। १ आदेय-इस नामकर्मके उदयसे शरीरपर प्रभा और कांति होती है। १ अनादेय-इस नामकर्मके उदयसे शरिपर प्रभा और कांति नहीं होती है। १ यशःकीर्ति-इस नामकर्मकं उदयसे जीवकी संसारमें प्रशंसा और कीर्ति ( नामवरी ) होती है । १ अयशाकीर्ति-इस नामकर्मके उदयसे जीवकी कीर्ति नहीं होने पाती है। १ तीर्थकर-इस नामकर्मके उदयसे जीवको अरहंत पट मिलता है अर्थात् वह तीर्थकर होता है। गोम धर्म। गोत्र फर्मके २ भेद:-१ गोत्र २ नाचगांत्र । उच्च गोर उसे कहने । जिन उदय जीव टोरमान्य ऊँचे फुलमें पैदा रो।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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