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________________ (४८) परीपह २२ हैं--क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंश-मसक, नग्न, अरति, स्त्री, चर्या, आसन, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तुणस्पर्श, मल, सत्कार-पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन ।। १ भूखके सहन करनेको क्षुधापरीषह कहते हैं । २ प्यासके सहन करनेको तृषापरीपह कहते हैं । ३ सर्दीका दुःख सहन करनेको शीतपरीपह कहते हैं। ४ गर्मीके दुःख सहन करनेको उप्णपरीपह कहते हैं । ५ डॉस, मच्छर, बिच्छू वगैरह जीवोके काटनेके दुःख सहन करनेको दंश-मसकपरीषह कहते हैं। ६ नंग रहकर भी लज्जा, ग्लानि और विकार नहीं करनेको नग्नपरीषह कहते हैं। ७ अनिष्ट वस्तु पर भी द्वेष नहीं करनेको अरतिपरीषह कहते हैं। ८ ब्रह्मचर्यव्रत भंग करनेके लिये स्त्रियों के द्वारा अनेक उपद्रव होनेपर भी विकार नहीं करना स्त्रीपरीषह है । ९ चलते समय पैरमे कटीली घास कंकर चुभ जानेका दुःख सहन करना चर्यापरीषह है । १० देर तक एक ही आसनसे बैठे रहनेका दुःख सहन करना, आसनपरीषह है। ११ कंकरीली जमीन अथवा पत्थरपर एक ही करवटसे . सोनेका दुःख सहन करना, शय्यापरीषह है।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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