SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बड़ा जैन-ग्रन्थ-संग्रह ! . .. ... भूल भाल उसको तज देना, या तज देना धार प्रमाद ॥ ऊँचे नीचे आगे पीछे, अगल बगल मित्रो बढ़ना। दिग्वतके अतिचार कहाते,. याद न मर्यादा रखना ॥६०॥ अनर्थदण्डविरति । दिगमर्यादा जो की होवे, उसके भीतर भी विन काम। पाप योगसे विरक्त होना; है अनर्थदंडवत नाम ॥ हिंसादान प्रमादचर्या, पापादेश-कथन अपध्यान । त्योंही दुःश्रुति पाँचों ही थे, इस चुतके हैं भेद.सुजान ॥६॥ हिंसादान। . . . छुरी कटारी खंग खुनीता, अग्न्यायुध फलसा तलवार। सांकल सींगी अस्त्र-शस्त्रका, देना, जिनसे होवें वार॥ हिंसादान नामका मित्रो, कहलाता है अनरथदंड । बुधजन इसको तज देते हैं, ज्यों नहिं होवें युद्ध प्रचंड ॥६॥ प्रमादचयों। पृथ्वी पानी अग्नि वायुका, विना काम आरंभ करना। व्यर्थ छेदना वनस्पतीको, बे-मतलव चलना फिरना ॥ औरों को भी व्यर्थ घुमाना, है प्रमाद चर्या दुखकर । कहा अनर्थदंड है इसको, शुभ चाहे तो इससे डर ॥३॥ पापोपदेश या पापादेश। जिससे धोखा देना आवे, मनुज करे त्यों हिंसारम्भ । तिर्यंचोंको संकट देवे, वणिज करे फैलाकर दम्भ ।। ऐसी ऐसी बातें करना, पापादेश कहाता है। इस अनर्थदंडकको तजकर, उत्तम नर सुख पाता है ॥६॥ अपध्यान । . . , रागद्वेष के बसमें होकर, करते रहना ऐसा ध्यान । उसकी प्रिया मुझे मिल जावे,मिल जावे उसके धनधान॥ वह मर. जावे वह कट जावे, उसको होवे जेल महान । वह लुट जाचे संकट पावे, है अनर्थदंडक अपध्यान ॥६५॥
SR No.010157
Book TitleBada Jain Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Mandir Sagar
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy