SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। - - - यह नव प्रकार की भक्ति दातार है । अर्थात् दातार कहिए दान देनेवाले को यह नव प्रकार की नवधाभकि करनी चाहिए। दातार के सातगुण-१ थद्धावान् होना, २शक्तिवान होना, ३ अलोभी होना, ४ दयावान होना, ५ भक्तिवान होना, ६ क्षमावान् होना और विवेक वान होना। दातार में यह सात गुण होते हैं । अर्थात् जिसमें यह सात गुंग हो यह सच्चा दातार है। ___ दातार के पांच भूपण-१ आनन्दपूर्वक देना, २ आदरपूर्वक देना, ३ प्रिय वचन कहकर देना, ५ निर्मल भाव रखना, ५जन्म सफल मानना। दाता के पांच दूपण-१ विलम्ब से देना, २ विमुख होकर देना, ३ दुर्घचन कहके देना, ४ निरादर करके देना, ५.देकर पछताना। ___यह दाता के पांच दूषण हैं । अर्थात् दातार में यह पांच बातें नहीं होनी चाहिए। ग्यारह प्रतिमाओं का सामान्य स्वरूप। ' दोहा । प्रणम पंच परमेष्टि पद, जिन आगम अनुसार । श्रावक-प्रतिमा एकदश काहुँ भविजन हितकार ॥१॥ सवैया-श्रद्धा कर व्रत पाले, सामाफि दोप टालै, पौसी माँड सचित की त्यागै, लो घटायक । रात्रिमुक्ति परिहरै,
SR No.010157
Book TitleBada Jain Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Mandir Sagar
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy