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________________ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। नोट-कुलकरों में नाभिराजा, दान देने में श्रेयांस राजा, तप करने में बाहुवली जो एक साल तक कायोत्सर्ग खड़े रहे। भाव की शुद्धता में भरत, चक्रवर्ती को दीक्षा लेते ही केवल ज्ञान हुआ। वलदेवों में रामचन्द्र, कामदेवों में हनुमान, सतियों में सीता, मानियों में रावण, नारायणों में कृष्ण, रुद्रों में महादेव, बलवानों में भीम, तीर्थंकरों में पार्श्वनाथ, ये पुरुष जगत् में बहुत प्रसिद्ध हुए हैं । दूसरे सिद्धक्षेत्रों के नाम । १ मांगीतुंगी, २ मुक्तागिरि (मेढ़गिरि),३ सिद्धवरकूट, ४ पावागिरि (चेलना नदी के पास), ५ शेत्रुञ्जय, ६ बड़वानी, ७ सोनागिरि, = नैनागिरि (नैनानन्द ), दौनागिरि, १० तारंगा, ११ कुन्थुगिरि, १२ गजपंथ, १३ राजग्रही, १४ गुणावा, १५ पटना, १६ कोटिशिला। चौदह गुणस्थान । १ मिथ्यात्व, २ सासादन, ३ मिश्र, ४ अविरत सम्यरव, ५ देशवत, ६ प्रमत्तविरत, ७ अप्रमत्तविरत, - अपूर्व करण, अनिवृत्तिकरण, १० सूक्ष्म सांपराय, ११ उपशान्त कषाय वा उपशान्त मोह, १२ क्षीण कषाय वा क्षीण माह, १३ सयोगकेवली, १४ अयोगकेवली। श्रावक के २१ उत्तर गुण। . '. १ लज्जावन्त, २ दयावन्त, ३ प्रसन्नता, ४प्रतीतिवन्त, ५परदेोषाच्छादन, ६ परोपकारी, ७ सौम्य दृष्टि, गुणग्राही,
SR No.010157
Book TitleBada Jain Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Mandir Sagar
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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