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________________ हुक्का का ड्रामा। - - - - - - लो मैं छोड़ी भंग आज से ईश्वर की सौगन्द ॥ मत विरोधी-भला किया ये काम आपने दई भंग जो छोड़। सव से नियम को अय तो कुंडी लोटा फोड़ ॥ मत. पीनेवाला-फुडी कोई सोटा तोडूं भर सड़क पर डालं। मत पोना अब भङ्ग भाइयो बारम्बार पुकार ॥ मनः हुका का डामा। हुक्केबाज-माहाहा क्या अच्छा हुक्का है । है काई हुक्के का पीने वाला ॥ (चलन) क्या हुक्का बनाये आला, भर भर पोलो तुम लाला । जो पीयें इसे पिलायें वह लुफ ज़िन्दगो पावें ॥ विरोधी-बुरी आदत है यह भाई मत इसकी करो घड़ाई। दूर दूर हो लानत लानत यो वनता सौदाई ॥ यह तन को खूब जलावे. बलगम को बहुत बढ़ाये, जो मुह से इसे लगावे, ना लग्जत कुछ भी पाये ।। हुक्के घाज-जिसको इक चिलम पिलाई बलगम की करी सफाई। विरोधी-दूर दूर हो लानत लानन क्यों बनता सौदाई ॥ हुक्केबाज-क्या हुक्का बना यह माला,भरभर पीला तुम लाला। जो पी। इसे पिलायें वह अकल मन्द कहलायें ।। विरोधी-जो हुक्के का दम ला, ले निलम आग को जावें। सौ सी गाली फिर खावे यह मान वड़ाई पा॥ हुक्केवाज--यह कैसी वात वनाई कुछ कहते शरम न आई । विरोधी-दुर दूर हो लानत लानत. क्यों बनता सौदाई ।। . हुक्केवाज-क्या खूब बना यह भाला, गङ्गाजल इसमें डाला। पीते हैं अदना आला, यह घट में करें उजाला ॥ विरोधी-क्या खाक बना यह आला,दिल जिगर करे सब काला!. ।
SR No.010157
Book TitleBada Jain Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Mandir Sagar
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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