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________________ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। २३१ गिर केशर अति सुन्दर कुमकुम रंग बनाई। धार देत जिन चरनन आगे भव आताप नसाई ।। पारसनाथ० ॥ सुगंधं । मोती सम अति उज्जल तन्दुल ल्यावो नीर पखारो । अक्षय पद के हेतु भावलो श्री जिनवर ढिग धारो ..। पारस०॥ अक्षतं । वेला अरमच कुन्द चमेली पारजात के ल्यावो । चुन चुन-श्री जिन अन चढ़ाऊं मनवांछित फल पावो । पारस ॥ पुष्पं । वावर फेनी गोजा आदिक घृत में लेत पकाई । कंचन थार मनोहर भरके चरनन देत चढ़ाई ॥ पारस ॥ नैवेद्य ।। मनमय दीप रतनमय लेकर जगमग जोत जगाई। जिनके आगे आरति करके माह तिमिर नस जाई पारस०॥ दी। चूरन कर मलयागिर चन्दन धूप दशांक बनाई। तट पावक में खेय भावस कर्मनाश हो जाई । पारसनाथ ॥ धूपं ॥ श्रीफल आदि बदाम सुपारी भांत मांत के लावो । श्री जिन चरन चढ़ाय हरप कर तार्ते शिव फल पावो ॥ पारस० ।। फलं ।। जल गंधादिक अट दरब ले अर्घ बनावो भाई। नाचत गावत हर्प भाव सो कंचन थार भराई पारसा। अधी| गीतका छंद ।। मन वचन काय त्रिशुद्ध करके पार्श्वनाथ सुपूजिये। जल आदि अर्घ चनाय भविजन भक्तिचन्त सुहूजिये ।। पूज्य पारसनाथ जिनवर सकल सुख दातारजी। जे करत है नरनार पूजा लहत सुःख अपारजी ॥ पूर्ण अर्धे ॥दोहा॥ यह जगमें विख्यात है, पारसनाथ महान। जिन गुनकी जयमालका भाषा करौं बनान।। पद्धरी छंद ॥जय जय प्रणमा श्री पार्श्व देव । इन्द्रादिक तिनकी करत सेव।। जय जय सुबनारस जन्म लीन । तिहुँ लोक विषे उद्योत कोन ॥१॥ जय जिनके पितु श्री विश्वसेन । तिनके घर भये सुख चैन एन । जय वामादेवी माय जान । तिनकै उपजे पारस महान ॥२॥ जय तीन लोक
SR No.010157
Book TitleBada Jain Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Mandir Sagar
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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