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________________ आत्मतत्व-विचार पुनर्जन्म का सिद्धान्त सर्वज्ञकथित है इस तर्क का हम पूर्ण निराकरण करेंगे। पर उसमे पहले यह सूचित कर देना चाहते है कि, पुनर्जन्म का सिद्धान्त किसी की कल्पित वस्तु नहीं है, बल्कि जो भूत, वर्तमान और भविष्य के सब पदार्थों की सब पर्यायो (स्वरूपो ) को साक्षात् जान-देख सकते है। उनका कहा हुआ है। इसलिए वह अन्यथा हो ही नहीं सकता। ये सर्वज महापुरुप वीतराग थे; इसलिए उन्हें किसी के प्रति राग या द्वेप नहीं था। दूसरे शब्दो में कहें तो उन्हें इस जगत् का कोई भी स्वार्थ नहीं था कि, अपने ज्ञान में वस्तु को देखे एक प्रकार से और बतायें दूसरे प्रकार मे | इसलिए, उन्होंने जिस प्रकार कथन किया है, उसी रूप में तथ्य को स्वीकार करना चाहिए। धर्मश्रद्धालु आत्माये तो उनके कथन को ज्या-का-त्यो ग्रहण करती हैं। ___ अनन्तज्ञानी के वचनों पर विश्वास न रखना और अपनी मामूली, तुच्छ बुद्धि पर विश्वास रखना, यह किस तरह की होशियारी है ? आपको बडी इमारत बनवानी हो तो अपनी बुद्धि पर विश्वास रखते हैं या 'इजीनियर' की बुद्धि पर ? आपको रोग-निवारण करना हो, तो अपनी बुद्धि पर विश्वास रखते हैं या वैद्य, हकीम, डॉक्टर की बुद्धि पर ? अगर ऐसे विषय में आप अपनी बुद्धि पर विश्वास न रख कर एक कुगल इजीनियर या कुशल वैद्य-हकीम-डॉक्टर की बुद्धि पर विश्वास रखते हैं; तो तत्व के विषय में तत्त्वपारंगत सर्वज भगवत पर विश्वास क्यो नहीं रखते ? सर्वन भगवत ने 'भवसमुद्र' कहा है । इसका अर्थ यह है कि, समुद्र के जलबिन्दुओ की तरह भवो की सख्या व्यपार है। इस भव की अनन्तता पुनर्जन्म स्वीकार किये बिना, कैसे घटित हो सकती है ? उन्होंने यह भी * केवल ज्ञानी को पहले शान और फिर दर्शन होता है, इसलिए यहाँ जानदेख सकते है, ऐसा प्रयोग किया है। उसका विशेष कथन आगे आयेगा।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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