SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० श्रात्मतत्व-विचार मे आपको धर्म- क्रिया करने में कोई बाधा न आये इसकी पूरी सावधानी रखी जायेगी । अपनी इस धर्म - क्रिया के पूर्ण हो जाने पर आप काम पर आना और मुझे भी अपने जैसा धर्मी बनाना । " ये शब्द सुनकर मत्री अत्यन्त आनन्दित हुआ। उसकी खुशी का कारण यह नहीं था कि मंत्री - मुद्रा वापस मिल गयी या वेतन दूना हो गया; बल्कि यह था कि राजा पर धर्म का प्रभाव पड़ा और वह धर्म-प्रेमी बन गया । मंत्री धर्म में अडिग रहा, उसकी श्रद्धा जरा भी चलित नहीं हुई, तो स्वय उन्नत हुआ और राजा पर भी उपकार कर सका । अगर वह दुनियावी विचारो में फॅसकर धर्म से डिग जाता तो धर्म भी गुमाता और अपनी जान भी गुमाता ! इसलिए सुन पुरुषों को धर्म में पूरा-पूरा रस लेना चाहिए और प्राणोत्सर्ग हो जाने पर भी उसे छोड़ना नहीं चाहिए। चौरासी लाख योनियों के नाम अत्र हम मूल बात पर आयें । चौरासी लाख योनियों के नाम' शास्त्रकारो ने इस प्रकार गिनाये हैं : १ चौरासी लाख जीव-योनि-सबधी जीव विचार प्रकरण में नीचे की गाथाएँ मिलती हैं । तह चउरासी लक्खा, जोगीण होइ जीवाण । पुढवईण चउरह, पत्तेय सत्त सत्तेव ॥४५॥ दस पत्ते य तरुण, चउदस लक्खा हवति इयरेपु । विगलिदिए दो दो, चउरो पचिदि- तिरियाण ||४६ || चउर चउर नारय-सुरेस मणुश्राण चउदस हवति । सर्पिडिया य सव्वे, चुलसी लक्खो उ जोगी ||४७ ||
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy