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________________ सम्यक चारित्र ७०५ प्रत्याख्यान कराते हैं। उसके बाद अनुक्रम से बड़ी दीक्षा के समय पाँच महाबत उच्चरित कराते हैं और रात्रिभोजन विरमण-व्रत भी धारण कराते है। पहला महीव्रत पहला महावत प्राणातिपात-विरमण-व्रत है। उससे सूक्ष्म-बादर, स्थावर-वस सर्व प्राणियो की मन-वचन-काया से हिंसा करना नहीं, कराना नहीं और करनेवाले को अच्छा जानना नहीं; ऐसी प्रतिज्ञा ग्रहण की जाती है। यह महाव्रत सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है, इसलिए उसे पहले ग्रहण कराया जाता है। स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग करना अर्थात् पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजसकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय इनमें से किसी की विराधना नहीं करना ! इस प्रतिज्ञा के कारण कोई भी साधु किसी प्रकारकी जमीन नहीं खोदे, बावड़ी, तालाब, कुंआ, सरोवर आदि का और बरसात का कच्चा पानी नहीं पीये और न वर्फ का उपयोग करे; चकमक या दियासलाई का उपयोग करके या अन्य प्रकार से अग्नि नहीं प्रकटावे, अग्नि को नहीं संकोरे, और यहाँ तक कि, अग्नि का स्पर्श भी नहीं करे । जहाँ अग्नि को स्पर्श ही वर्जित है; वहाँ चूल्हा जलाकर रसोई तो करेगा ही कैसे ? रसोई करने में स्थावर जीवो की विराधना होती है, इसलिए कोई साधु रसोई नहीं करे । वह पखे से हवा न खाये। ____ त्रस जीवों की हिंसा का त्याग होने के, कारण वह ऐसी कोई प्रवृत्ति नहीं करे कि जिसमें दो-इन्द्रिय, तीन-इन्द्रिय, चार-इन्द्रिय या पचेन्द्रिय जीवों का वध हो। साधु से चलते, बोलते, खाते, पीते, उठते-बैठते, सोते किसी भी सूक्ष्मस्थूल जीव की हिंसा न हो, इसके लिए खूब सावधानी रखनी पड़ती है और इसीलिए वे अपने पास रजोहरण या ओधा
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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