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________________ ७०१ सम्यक् चारित्र श्रावक की दिनचर्या देशविरति चारित्र को धारण करनेवाले गृहस्थकी दिनचर्या का वर्णन शास्त्रकारों ने 'नवकारेण विवोहो' पद से शुरू होनेवाली गाथा मे किया है, उसे भी यहाँ बतलाये देते हैं। श्रावक को पचपरमेष्ठी के मंगलस्मरणपूर्वक, चार घड़ी रात बाकी रहने पर, निद्रा का त्याग करना चाहिए। तब धर्म-जागरिका करनी __ चाहिए; यानी धर्म सम्बन्धी विचारणा करनी चाहिए | उसके बाद रखत्रयी की शुद्धि के लिए पटावश्यक-रूप प्रतिक्रमण करना चाहिए। उसके करने के बाद चैत्य-वन्दन करना चाहिए और पञ्चक्खाण (प्रत्याख्यान) लेना चाहिए। ___तब जिन-मदिर में जाकर वहाँ पुष्पमाला, गंध आदि द्वारा जिनबिम्बो का सत्कार करना चाहिए और वहाँ से गुरु के पास जाकर उन्हें वन्दन कर विधिपूर्वक पच्चक्खाण लेना चाहिए। उसके बाद उनसे धर्मश्रवण कर सुखसाता की पृच्छा करनी चाहिए। और, भात-पानी का लाभ देने की विनती करनी चाहिए। अगर गुरुमहाराज को औषध आदि की जरूरत हो तो उसके लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए। उसके बाद भोजन किया जा सकता है। फिर लौकिक और लोकोत्तर दोनों दृष्टियों से अनिंदित व्यवहार की साधना की जा सकती है। उसके बाद यानी सायकाल में समय पर भोजन करके दिवसचरिम प्रत्याख्यान द्वारा सवर को भलीभाँति धारण करना चाहिए और जिनबिम्बो की अर्चा, गुरुवन्दन, सामायिक-प्रतिक्रमण आदि क्रियाएँ करनी चाहिए। फिर स्वाध्याय, सयम, वैयावृत्य आदि से परिश्रमित हुए साधुकी पुष्ट आलम्बनरूप विश्रामणा करनी चाहिए और नवकार-चिंतन आदि उचित योगों का अनुष्ठान करना चाहिए। उसके बाद अपने घर वापस आकर
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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