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________________ सम्यक् चारित्र ६६५ इस जगत में जीव दो प्रकार के हैं-(१) बस और (२) स्थावर । इनमें से गृहस्थ त्रस जीवों की हिंसा छोड़ सकते है; पर स्थावर की हिंसा सर्वोशतः नहीं छोड़ सकते । उसकी जयणा अलबत्ता कर सकते हैं और करनी चाहिए। सजीवों में कितने ही अपराधी होते हैं, कितने ही निरपराध । अगर कोई स्त्री, बहिन, बेटी या पुत्र परिवार पर आक्रमण करे, गाँव को भ्रष्ट करे, धर्मस्थानो को लूटे या नष्ट करे या देश पर चढाई करे तो अपराधी गिना जायेगा । गृहस्थ ऐसे अपराधी से लड़े और उसे योग्य दड दे तो भी व्रत भग नहीं होता। व्रतधारी राजाओं, मत्रियों तथा दंडनायक इस तरह शत्रुओं से लडे हैं और उन्होंने देश, समाज तथा धर्म की रक्षा की है। इस कारण गृहस्थों को निरपराधी त्रसजीवो की हिंसा का त्याग और अपराधी त्रसजीवों की जयणा होती है। __ निरपराधी त्रस जीवों की हिंसा दो प्रकार से होती है-(१) सकल्प से और (२) आरभ से यानी जीवन की आवश्यकता के लिए। इस दो प्रकार की हिंसा में से गृहस्थ सकल्पपूर्वक निरपराधी त्रस जीवों की हिंसा का त्याग और आरम्भ की जयणा कर सकते हैं। निरपराधी त्रस जीवों की सकल्प पूर्वक हिंसा भी दो प्रकार से होती है-(१) निरपेक्ष रूप से और (२) सापेक्ष रूप से । विशेष कारण बिना निर्दयतापूर्वक मार मारना या दूसरी तरह दुःख देना, यह निरपेक्ष रूप से होनेवाली हिंसा है। और, कारणवशात् ताड़न बन्धन आदि करना सापेक्ष हिंसा है। गृहस्थ आजीविका के लिए गाय, भैंस, भेड़, बकरी, आदि पशुओं को पालते हैं। कारण वशात् उनका ताड़न-बन्धन करना पड़ता है। उसी प्रकार पुत्र पुत्रियों को शिक्षा देने के लिए भी ताड़नतर्जन आदि करना पड़ता है। इसलिए गृहस्थों को निरपराधी त्रस जीवो की सकल्पपूर्वक निरपेक्ष रूप से होनेवाली हिंसा का त्याग होता है और
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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